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उपाध्याय
जो गुरु वगैरह गीतार्थ महात्माओं के पास सदैव रहते हैं, जो शुभयोग तथा उपधान (तपश्चरण) धारण करके मधुर वचनों से संपूर्ण शास्त्रों का अभ्यास करके पारंगत हुए हैं और जो अनेक साधुओं एवं गृहस्थों को पात्रअपात्र की परीक्षा करके यथायोग्य ज्ञान का अभ्यास कराते हैं, ऐसे साधु उपाध्याय कहलाते हैं।
ज्ञान ग्रहण करने के अयोग्य मनुष्य के संबंध में उत्तराध्ययन सूत्र के ग्यारहवें अध्ययन में कहा है:
अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भइ ।
थंभा कोहा पभाएणं, रोगेणालस्सएण य ॥ अर्थात्-जिन पाँच कारणों से शिक्षा की प्राप्ति नहीं होती है, वे पाँच कारण यह हैं:-(१) अहंकार (२) क्रोध (३) प्रमाद (४) रोग और (५) आलस्य ।
शिक्षा के योग्य पात्र के लक्षण
जो शिष्य निम्नलिखित आठ गुणों का धारक होता है, वह हितशिक्षा ग्रहण कर सकता है: