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________________ २०२ ] * जैन-तत्त्व प्रकाश * (१) त्रस जीव को पानी में डुबा कर मारना । (२) श्वासोच्छवास में रूकावट डालकर मारना । (३) धूम्र का प्रयोग करके मारना । (४) मस्तक में घाव करके मारना । (५) मस्तक पर चमड़े को बाँध कर मारना (६) मूर्ख, अपंग और पागल का उपहास करना । (७-८) स्वयं अनाचार करना और दूसरे के माथे मढ़ देना । (६) सभा में मिश्रभाषा बोलना, जिसका अर्थ दोतरफा निकल सकता है। (१०) बलात्कार से भोगी का भोग छुड़वाना । (११) ब्रह्मचारी न होते हुए भी ब्रह्मचारी कहलाना । (१२) बालब्रह्मचारी न होते हुए भी बालब्रह्मचारी कहलाना । (१३-१४) सब ने मिल कर जिसे बड़ा बनाया हो वह सब को दुःख पहुंचावे अथवा सब मिल कर उसे दुःख पहुँचावें । (१५) पति और पत्नी परस्पर विश्वासघात करें। (१६-१७) एक देश के राजा की अथवा अनेक देशों के राजा की घात करने की इच्छा करना। (१८) साधु को संयम से भ्रष्ट करना । (१६-२०-२१) तीर्थङ्कर की, तीर्थङ्कर-प्रणीत धर्म की और प्राचार्यउपाध्याय की निन्दा-अवहेलना करना । (२२) आचार्य-उपाध्याय की भक्ति न करना । (२३) बहुसूत्री (पंडित) न होकर भी पण्डित कहलाना । (२५) तपस्वी न होते हुए भी तपस्वी कहलाना ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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