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________________ * प्राचार्य * [१८१ सारा जीवन लगा रहा है, जिसके सुख के लिए रात-दिन यत्न करता : रहता है, वह शारीर भी अन्त में तेरे साथ नहीं जाएगा, तो फिर थन और कुटुम्ब आदि का तो कहना ही क्या है ? तू सत्-चित्-आनन्दस्वरूप है, अविनाशी है और संसार के समस्त सम्बन्ध विनश्वर हैं, क्षणभंगुर हैं। ऐसी दशा में तेरी और उनकी बन ही कैसे सकती है ? इन क्षणभंगुर पदार्थों के संसर्ग से तूने संसार में अनन्त विडम्बना सहन की है। फिर भी इनके साथ तेरा ममत्व नहीं छूटा ! तू स्वयं इनके साथ ममता का संबंध स्थापित करता है और तू स्वयं ही दुःख उठाता है । मकड़ी के समान आप ही जाल बिछाता है और आप ही उसमें फँस कर कष्ट उठाता है। आत्मन् ! तू स्वभाव से अनन्त ज्ञान-धन का स्वामी होकर भी मूल् का शिरोमणि क्यों बना हुआ है ? अब भी अन्तर्नेत्र खोल । आत्मा व पर को पहचान । पर-पदार्थों से प्रीति का नाता तोड़। अपने पदार्थ ज्ञान, दर्शन और चारित्र है । यह तीन रत्न तेरी अनमोल और असाधारण सम्पदा हैं। इन्हीं से प्रीति जोड़। यही तेरे सुख का मार्ग है । इस प्रकार विचार करना एकत्वानुप्रेक्षा है । (४) चिदानन्द ! तू अनादि काल से चतुर्गति रूप संसार में ठोकरें खाता भटकता फिरता है । अनन्त वार तू नरक गति में गया है। वहाँ दुस्सह क्षेत्रवेदना और परमाधामियों की मार सही। तिर्यश्चगति में छेदन, भेदन, ताड़न, तर्जन तथा पराधीनता आदि के कष्ट मूक होकर सहन किये । मनुष्य गति में दरिद्रता, रोग, शोक आदि की अनेक वेदनाएँ भुगतीं। देवगति में आभियोग्य देव होकर हीन कार्य किये और वज्रों के प्रहार सहन किये । च्यवन के समय घोर मानसिक पीड़ा का अनुभव किया। इस प्रकार चारों गतियों में अनन्त-अनन्त वार अनन्त-अनन्त विडम्बनाएँ सहन करते-करते अनन्तानन्त काल व्यतीत हो गया है। किसी प्रकार कष्ट भोगते-भोगते पापों का कुछ क्षय हुआ और पुण्य की वृद्धि हुई । उसके फलस्वरूप यह मनुष्य-जन्म आदि उत्तम सामग्री प्राप्त हो सकी है। अब इस सामग्री से पूरा लाभ उठा ले । तीन करण तीन योग से आरंभ-परिग्रह का त्याग कर और आन्तरिक क्रोध आदि प्रवृत्तियों का दमन कर, जिससे तू इन विडम्बनाओं से छूटकर मोक्ष रूप परमानन्द परम पद को
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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