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वि० सं० १९६२ का चातुर्मास दिल्ली में हुआ। अपने अमृतमय उपदेश से दिल्ली की जनता को लाभान्वित करके, चातुर्मास पूर्ण होने परं
आप आगरा, मथुरा, कोटा, बूंदी, प्रतापगढ़, इन्दीर, रतलाम, उज्जैन होते हुए धूलिया पधारे।
वि. सं. १६६३ का चौमासा धूलिया में हुआ। इस चातुर्मास में आपके कान में पीड़ा उत्पन्न हुई। आखिर भाद्रपद कृष्णा १० ता० १३8-१६३६ के दिन आप स्वर्गस्थ हो गए । आपकी आयु उस समय ६० वर्षे 8 दिन की थी। पूज्यश्री के स्वर्गवास से साधुमार्गी समाज का एक अनमोल रत्न, एक महान् सन्त, एक आदर्श साहित्यसेवी और आचरणपरायण महामुनि समाज से सदा के लिए छिन गया। प्राचार्य महाराज ने अपने जीवनकाल में श्रीसंघ की ज्ञान-चारित्र संबंधी उन्नति में जो सराहनीय योग प्रदान किया, उसे जैन समाज युग-युग में स्मरण करेगा। आपके द्वारा निर्मित विशाल ग्रन्थराशि आपकी कीर्ति को चिरकाल तक स्थायी रक्खेगी। सचमुच ही पूज्यश्री अमोलकऋषिजी म. समाज में अमोलक रन थे।