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________________ १५८] ॐ जैन-तत्त्व प्रकाश, त्याग करने से दुर्गन्ध उत्पन्न होती है और उससे रोगों की उत्पन्नि होती है और छूत की बीमारियाँ उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है। अतः साधु एक पात्र में लघुनीति करके एकान्त जगह में छितरा-छितरा कर डाल दे। इनके अतिरिक्त भिक्षा लाने के पात्रों को रखने की कपड़े की झोली, पानी छानने का छन्ना, पात्र साफ करने का. कपड़ा आदि-आदि उपकरण साधु सदैव अपने पास रखते हैं। विशेष प्रयोजन होने पर छोटी बाजौठ, बड़ा पट्टा, गेहूं-चावल आदि का पयाल, गृहस्थ के घर से माँग लाते हैं और काम हो जाने पर लौटा देते हैं। इन सब उपकरणों को (१) द्रव्य से, यतनापूर्वक ग्रहण करे और यतनापूर्वक रक्खे, वृथा तोड़-फोड़ कर नष्ट न करे (२) क्षेत्र से-गृहस्थ के घर में रखकर ग्रामानुग्राम विहार न करे, क्योंकि ऐसा करने से प्रतिबन्ध होता है, प्रतिलेखना करने में अनियमितता होती है (३) काल से प्रातःकाल और सायंकाल-दोनों समय वस्त्रों, पात्रों और उपकरणों की प्रतिलेखना* करे । प्रतिलेखना करते समय बातचीत न करे और न इधर-उधर देखे-एकाग्र दृष्टि और एकाग्र मन से प्रतिलेखना करे। जिन वस्त्रों की प्रतिलेखना न की हो, उन्हें प्रतिलेखना किये हुए वस्त्रों के साथ न मिलावे । पहले मुँहपत्ती की, फिर गुच्छक की (पूँजणी की), फिर चोलपट्ट की, चादर की, फिर रजोहरण आदि की क्रम से प्रतिलेखना करे (४) भाव से-उपकरणों को उपयोग-सावधानी के साथ काम में ले । उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है-'पञ्चयत्थं च लोगस्स' अर्थात् साधुवेष से ही लोगों को प्रतीति होती है कि यह साधु है । इसीलिए एक नियत वेष धारण करना आवश्यक है, अभिमान या देह की ममता के कारण नहीं । अतः वन आदि पर ममता नहीं होनी चाहिए। * प्रतिलेखना के २५ प्रकार-वस्त्र के तीन विभाग कल्पित करके प्रत्येक विभाग के ऊपर, मध्य में और नीचे-इस तरह तीनों जगह देखे। यह ३४३८ अखोड़े हुए। इसी प्रकार वस्त्र को दूसरी तरफ देखने से ६ पखोड़े हुए । कुल १८ हुए। उन में जीव होने की शंका हो तो तीन आगे और तीन पीछे के ६ विभागों की पूजणी से प्रमार्जना करे । यह छह पुरीमा हैं । सब मिलाकर २४ भेद हुए । शुद्ध उपयोग रखना पच्चीसवाँ भेद है।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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