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________________ भावक श्राधिकाओं ने पिनती की कि आपकी आंखों की श्रीसंघ को अत्यन्त श्रावश्यकता है। आप अकेले हैं। यदि आंखों की ज्योति मंद हो गई तो साधुपना पालना कठिन हो जायगा । इस कथन पर महाराज श्री ने विचार किया और औषधोपचार करवाया। इस वर्षे का चौमासा भी धूलिया ही हुया । चौमासे के पश्चात् भी अस्वस्थता के कारण महाराज श्री को विहार नहीं करने दिया गया। महाराजश्री भक्त जनों की प्रबल प्रार्थना को अस्वीकार न कर सके। यहां माघ महीने में घोरकुण्ड वाली पअकबर बाई की दीवा महासती सायरकँवरजी के पास हुई। यह उत्सव भी लिया श्री संप ने सम्पन्न किया । तीसरा चौमासा भी लिया में ही हुभा । चौमासे में महाराज श्री के संधारी भाई श्रीमान् सेठ अपाचजी कास्टिया दर्शनार्थ बारे । खैर संघ में था के प्याले श्रादि को प्रभाषना में लगमन ४०० रुपये खर्च किये । हैद्राबाद से श्रीमान् सेठ जमनालाखजी रामलालजी कीमती भी पाये । रामलालजी ने शीलव्रत का स्कंध धारण किया। जैनतवप्रकाश और थोकड़े की पुस्तक छपवाकर अमूल्य बितरण की । गरीबों को वस्त्रदान दिया। हैद्राबाद से श्रीमान् धर्मात्मा रूपचन्द्रजी अवाहरलालजी रामावत भी सकुटुम्ब आये। आपने सपश्चर्या की और धर्मार्थ अच्छी रकम खर्च की । लगभग १०००० मनुष्य दर्शनार्थ आये । धर्म, तप, प्रभावना आदि खुब हुआ । दलोट (मालवा) निवासी श्री जसराजजी तथा कन्हैयालालजी दोनों पिता पुत्र ने भगवती दीक्षा धारण की । जसराजजी का नाम श्रीजसवन्त ऋषि और कन्हैयालालजी का नाम श्री 'शान्तिऋषि' रक्खा गया। वहां से विहार करके चरितनायकजी महाराज मनमाड़ पधारे। यहां मुनिश्री चौथमलजी महाराज के साथ समागम हुा । यहीं श्री रूपचन्द्रजी पूज्य पदवी स्वीकार करने की प्रार्थना करने आये। महाराज श्री मनमाड़ से विहार करके इन्दौर पधारे । इन्दौर में धूमधाम के साथ पूज्यपदवी का उत्सव हुआ, जिसका विवरण पृथक प्रकाशित हो चुका है। संवत् १९८६ का चातुर्मास भोपाल में हुआ। श्री अमीचन्दजी कांस्टिया तथा श्री राजमलजी डोशी ने खूब सेवा की । चातुर्मास का समस्त व्यय भी आपने हो उठाया । इसी चातुर्मास में अजमेर साधु सम्मेलन का
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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