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® सिद्ध भगवान् ®
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कारण 'विभु' कहते हैं । आप 'अचिन्त्य' हैं क्यों कि आपके स्वरूप की कल्पना नहीं हो सकती, आप गुणों से 'असंख्य' हैं, सर्वश्रेष्ठ हो, सब से बड़े होने के कारण 'ब्रह्मा' हो, सर्व ऐश्वर्य-युक्त होने से 'ईश्वर' हो, अन्तरहित होने से 'अनन्त' हो, कामदेव के नाशक होने के कारण 'अनंगकेतु' हो, ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप योगपथ के निर्माता-ज्ञाता होने के कारण 'विदितयोग' हो, ज्ञानपर्याय से अनेक में व्याप्त होने के कारण 'अनेक' हो। सब का एक ही आत्मस्वरूप होने के कारण 'एक' हो अथवा आपके समान कोई दूसरी वस्तु नहीं है इस कारण आप एक-अद्वितीय हो । आपका इस प्रकार का स्वरूप सन्त पुरुष कह कर दूसरों को समझाते हैं।
चन्देसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धि मम दिसन्तु ।। अर्थ-चन्द्रमाओं से भी अधिक निर्मल, सूर्यों से भी अधिक प्रकाश करने वाले, समुद्र के समान गंभीर सिद्ध भगवान् मुझे सिद्धि प्रदान करें।
ऐसे अनेकानेक शुद्ध आत्मिक गुणों से समृद्ध सिद्ध भगवान् को मेरा त्रिकाल त्रिकरण त्रियोग की शुद्धिपूर्वक नमस्कार हो ।