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________________ ११२ ] ® जैन-तत्त्व प्रकाश वर्तमानकालीन कामदेवों, रुद्रों और नारदों के नाम चौवीस कामदेवों के नाम:-(१) बाहुबली (२) अमृततेज (३) श्रीधर (४) दशार्णभद्र (५) प्रसन्नचन्द्र (६) चन्द्रवर्ण (७) अग्नियुक्ति (८) सनत्कुमार (8) श्रीवत्स राजा (१०) कनकप्रभ (१२) शान्तिनाथ (१३) कुन्थनाथ (१४) अरनाथ (१५) विजयनाथ (१६) श्रीचन्द्र (१७) नलराज (१८) हनुमान (१६) बलिराज (२०) वसुराज (२१)प्रद्युम्न (२२) नागकुमार (२३) श्रीकुमार (२४) जम्बूस्वामी । ग्यारह रुद्रों के नामः-(१) भीम (२) जयतिसत्य (३) रुद्राय (४) विश्वानल (५) सुप्रतिष्ठ (६) अचल (७) पौण्डरीक (८) अजितधर (8) अजितनामि (१०) पीठा (११) सत्यकी । नौ नारदों के नाम- (१) भीम (२) महाभीम (३) रुद्र (४) महारुद्र (५) काल (६) महाकाल (७) चतुर्मुख (८) नरकवदन (8) ऊर्ध्वमुख । चौथा आरा समाप्त होने में जब तीन वर्ष और ८॥ महीने शेष रहते हैं तब चौवीसवें तीर्थकर मोक्ष पधार जाते हैं। (५) दुखमा आरा-उक्त प्रकार से चौथा आरा जब समाप्त हो जाता है तो २१००० वर्षे का 'दुखमा' नामक पाँचवाँ आरा आरम्भ होता है । चौथे आरे की अपेक्षा वर्ण, रस, गंध, स्पर्श में अर्थात् शुभ पुद्गलों में अनन्तगुनी हीनता हो जाती है । आयु क्रम से घटते-घटते १२५ वर्षे की, शरीर की अवगाहना सात हाथ की जथा पृष्ठकरंड (पसलियाँ) १६ रह जाते हैं। दिन में दो बार आहार करने की इच्छा होती है। पाँचवें पारे में दस बातों का अभाव हो जाता है—(१) केवलज्ञान+ (२) मनःपर्याय ज्ञान (३) परमावधिज्ञानर (४,५,६) परिहारविशुद्धि, सूक्ष्म * कामदेव आदि के नाम दिगम्बर सम्प्रदाय के सुदृष्टितरंगिणी शास्त्र में हैं। + चौथे आरे में जन्मे मनुष्य को पांचवें आरे में केवलज्ञान हो सकता है, पांचवें आरे में जन्म लेने वाले को नहीं होता। x सम्पूर्ण लोक और लोक जैसे असंख्यात खंड अलोक में हों तो उन्हें जानने की शक्ति जिसमें हो वह परमावधि ज्ञान कहलाता है।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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