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2 जैन-तत्त्व प्रकाश
फिर चार * कुल, १८ श्रेणियाँ+ (जातियाँ) और १८ प्रश्रेणियाँ स्थापित करते हैं। पुरुषों की ७२ कलाएँ.- स्त्रियों की चौसठ कलाएँ: और
* चार कुल- (१) कोतवाल, न्यायाधीश आदि का उग्रकुल, (२) गुरुस्थानीय उच्च पुरुषों का भोग कुल , (३) मंत्रियों का राजकुल, और (४) प्रजा का क्षत्रिय कुल ।
+क्षत्रियकुल की १८ श्रेणियाँ और प्रश्रेणियाँ इस प्रकार हैं:-(१) कुम्भकार (२) माली (३) कृषिबल (किसान), (४) बुनकर (५) चित्रकार (६) चूड़ीगर (७) दरजी (८) कलाल (E) तम्बोली (? ( रंगरेज (११) गोपालक (१२) बढ़ई (१३) तेली (१४) धोबी (१५) हलवाई (१६) नापित (१७) कहार (१८) बंधार (१६) सीसगर (२०) संगृही (२१) काछी (२२) कुदीगर (२३) कागजी (२४) रेवारी (२५) ठठेरा (२६) पटवा (२७) सिलावट (२८) भडभुजा (२९) सुवर्णकार (३०) चमार (३१) चुनारा (३२) धीवर (३३) गिरा (३४) सिकलीगर (३५) कसेरा (३६) वणिक ।
___पुरुषों की ७२ कलाएँ:-(१) लेखन (२) गणित (३) रूपपरिवर्तन (४) नत्य (५) संगीत (६) ताल (७) वाद्यवादन (८) बाँसुरी (8) नर लक्षण (१०) नारी-लक्षण (११) गज लक्षण (१२) अश्वलक्षण (१३)दण्ड लक्षण (१४) रत्नपरीक्षा (१५) धातुर्वाद (१६) मंत्रवाद (१७) कवित्व (१८) तर्क शास्त्र (१६) नीति शास्त्र (२०) धर्म शास्त्र (२१) ज्योतिष शास्त्र (२२) वैद्यक शास्त्र (२३) षड्भाषा (२४) योगाभ्यास (२५) रसायन (२६) अंजन (२७) स्वप्न शास्त्र (२८) इन्द्रजाल (२६) कृषिकर्म (३०) वस्त्रविधि (३१) द्यूतविधि (३२) व्यापार (३३) राजसेवा (३४) शकुनविचार (३५) वायुस्तंभन (३६) अग्निस्तंभन (३७) मेघवृष्टि (३८) विलेपन (३६) मर्दन (४०) अर्ध्वगमन (४१) स्वर्णेसिद्धि (४२) रूपसिद्धि (४३) घटबंधन (४४) पत्रछेदन (४५) मर्मछेदन (४६) लोकाचार (४७) लोकरंजन (४८) फल
आकर्षण (४६) अफलाफलन (जहाँ फल न लगता हो वहाँ बता देना), (५०) धारबन्धन (५१) चित्रकला (५२) ग्राम बसाना (५३) मल्लयुद्ध (५४) रथयुद्ध (५५) गरुड्युद्ध (५६) दृष्टियुद्ध (५७) वागयुद्ध (५८) मुष्ठियुद्ध (५६) बाहुयुद्ध (६०) दंडयुद्ध (६१) शस्त्रयुद्ध (६२) सर्पमोहन (६३) व्यन्तर मर्दन (६४) मंत्रविधि (६५) तंत्रविधि (६६) यंत्रविधि (६७) रौप्यपाकविधि (६८) सुवर्णपाकविधि (६६) बंधन (७०) मारण (७१) स्तंभन (७२) संजीवन ।
* स्त्रियों की ६४ कलाएँ:-(१) नृत्य (२) चित्र (३) औचित्य (४) वादित्र (५) मंत्र (६) यंत्र (७) ज्ञान (८) विज्ञान (6) दंभ (१०) जल स्तंभन (११) गीतगान (१२) तालमान (१३) मेघवृष्टि (१४) फलाकृष्टि (१५) आकार गोपन (रूप को छिपा लेना), (१६) धर्मविचार (१७) धर्मनीति (८) शकुनविचार (१६) क्रिया कलाप (२०) आरामरोपण (२१) संस्कृतजल्प (२२) प्रसादनीति (२३) सुवर्णवृद्धि (२४) सुगंधित तैल बनाना (२५) लीलासंचरण (माया करना) (२६) हाथी-घोड़ा की परीक्षा (२७) स्त्री-पुरुष के लक्षणों का ज्ञान (२८) कामक्रिया (२६) लिपिछेदन (३०) तात्कालिक बुद्धि (३१) वस्तुसिद्धि (३२) वैद्यक्रिया (३३) सुवर्णरत्न शुद्धि (३४) कुभभ्रम (३५) सार परिश्रम (३६) अंजनयोग (३७) चूर्ण योगः (२८) हस्तमटुत्ता (३४) वचनफ्टुता (४०) भोजनविधि (११) वाणिज्य