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________________ ६६ ] ® जैन-तत्त्व प्रकाश होता है। यहाँ के सूर्य और चन्द्रमा का जैसा तेज उदित होते समय होता है, वैसा वहाँ के चन्द्र-सूर्य का हल्का तेज सदैव रहता है। अढाई द्वीप के ज्योतिष्क देव भ्रमण करते रहते हैं, अतः यहाँ दिन-रात्रि श्रादि का भेद होता है और इसी आधार पर समय, श्रावलिका, मुहूर्त आदि काल का प्रमाण होता है। परन्तु बाहर के ज्योतिष्क देव स्थिर रहते हैं, अतएव जहाँ रात्रि है वहाँ सदा रात्रि ही रहती है और जहाँ दिन है वहाँ दिन ही रहता है। सब ज्योतिषियों के इन्द्र जम्बूद्वीप के चन्द्र और सूर्य* हैं। चन्द्र-सूर्य के साथ ८+ ग्रह हैं, २८ नक्षत्र हैं और ६६६७५०००००००००००००० (छयासठ हजार, नौ सौ पचहत्तर कोड़ाकोड़ी) तारे हैं। प्रत्येक ज्योतिषी के स्वामी के ४ अग्रमहिषियाँ (इन्द्रानियाँ) है। प्रत्येक इन्द्रानी का चार-चार ॐ दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रंथ में उल्लेख है कि आश्विन और चैत्र की पूर्णिमा के दिन जो चन्द्र और सूर्य भरतक्षेत्र में प्रकाशित होते हैं, वही इन्द्र हैं। +८८ ग्रहों के नाम-१ अङ्गारक, २ विकालक, ३ लोहिताक्ष, ४शनैश्वर, ५आधूनिक, ६ प्रधूनिक, ७ कण, ८ कणक, ६ कणकणक, १० कणवितानी, ११ कण शतानी, १२ सोम,१३ सहित, १४, अश्वसत, १५ कार्पोत्वत, १६ कबुक, १७ अजकर्क १८ दुदमक, १६ शङ्ख, २० शङ्ख नाम, २१ शङ्ख वर्ण, २२ कंश, २३ कंश नाम, २४ कंश वर्ण, २५ नील. २६ नीलाभास. २७रूप २८ रूपायभास. २६ भस्म, ३० भस्मरास. ३१तिल. ३२ पुष्पवणे ३३ दक ३४ दकवर्ण ३५ काय ३६ बध्य ३७ इन्द्रागी ३८धूमकेत ३४ हरि ४० पिंगलक ४१ बध ४२ शक ४३ वहस्पति ४४ शक ४५ अगस्ति ४६ माणवक ४७कालस्पश१८धुरक ४६प्रमुख ५०विकट ५१विषघ्न कल्प ५२प्रकल्प ५३जयल ५४अरुण ५५ अनिल ५६ काल ५७ महाकाल ५८ स्वस्तिक ५६ सौवस्तिक ६० वर्धमानक ६१ पालम्बोक ६२ नित्योदक ६३ स्वयंप्रभ ६४ आभास ६५ प्रभास ६६ श्रेयस्कर ६७ क्षेमंकर ६८ भाभकर ६६ प्रभाकर ७० अरज ७१ विरज ७२ अशोक ७३ तसोक ७४ विमल ७५ वितत ७६ विवस्त्र ७७ विशाल ७८ शाल ७६ सुव्रत ८० अनिवृत्त ८१ एकजटी ८२ द्विजटी ८३ करी ८४ करीक ८५ राजा ८६ अर्गल ८७ पुष्पकेतु ८८ भावकेतु । ४२८ नक्षत्र-१ अभिजित् २ श्रवण ३ धनिष्ठा ४ शतभिषा ५ पूर्वाभाद्रपद ६ उत्तराभाद्रपद ७ रेवती ८ अश्विनी भरणी १० कृत्तिका ११ रोहिणी १२ मृगशिर १३ आर्द्रा १४ पुनर्वसु १५ पुष्प १६ आश्लेषा १७ मधा १८ पूर्वाफाल्गुनी १६ उत्तरा फाल्गुनी २० हस्त २१ चित्रा २२ स्वाति २३ विशाखा २४ अनुराधा २५ जेष्ठा २६ मूल २७ पूर्वाषाढ़ा २८ उत्तराषाढ़ा।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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