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________________ ६२ ] ® जैन-तत्त्व प्रकाश अढाई द्वीप के बाहर (१) मनुष्यों की उत्पत्ति (२) बादर अग्निकाय (३) द्रह-कुण्ड (४) नदी (५) गर्जनारव (६) विद्युत् (७) मेघ (८) वर्षा (8) गड्ढ़े और (१०) दुष्काल नहीं होता। मानुषोत्तर पर्वत के बाहर के पुष्करार्ध द्वीप में देवताओं का तथा तिश्च आदि का निवास है। पुष्कर द्वीप के बाहर, पुष्कर द्वीप को चारों ओर से घेरे हुए, वलयाकार ३२००००० योजन विस्तार वाला पुष्करसमुद्र है। इसी प्रकार आगे एक द्वीप और एक समुद्र, के क्रम से द्वीप और समुद्र हैं। यह सब द्वीप और समुद्र एक दूसरे से दुगुने-दुगुने विस्तार वाले हैं। तीन द्वीपों और तीन समुद्रों का विस्तृत वर्णन किया जा चुका है। आगे के कुछ द्वीपों और समुद्रों के नाम यहाँ बतलाये जाते हैं:-(७) वारुणी द्वीप (८) वारुणीसमुद्र () क्षीरद्वीप (१०) क्षीरसमुद्र (११) घृतद्वीप (१२) घृतसमुद्र (१३) इक्षुद्वीप (१४) इदुसमुद्र (१५) नन्दीश्वर द्वीप (१६) नन्दीश्वर समुद्र (१७) अरुण द्वीप (१८) अरुणसमुद्र (१६) अरुणवर द्वीप (२०) अरुणवर समुद्र (२१) पवनद्वीप (२२) पवनसमुद्र (२३) कुएडल द्वीप (२४) कुण्डलसमुद्र (२५) शङ्ख द्वीप (२६) शङ्ख समुद्र (२७) रुचक द्वीप (२८) रुचक समुद्र (२६) मुजङ्ग द्वीप (६०) भुजङ्ग समुद्र (३१) कुशद्वीप (३२) कुशसमुद्र (३३) कुच द्वीप (३४) कुच समुद्र। इस प्रकार अगला-अगला, पूर्व-पूर्व वाले द्वीप अढाई द्वीप में हस्ती और सिंह की आयु मनुष्य की आयु के ही बराबर होती है, घोड़े की आयु मनुष्य की श्रायु का चौथा भाग; बकरे-मेढ़े जम्बुक की आयु अाठवाँ भाग; गाय, भैंस, ऊँट, गधे की आयु पाँचवाँ भाग और कुत्ते की आयु दसवाँ भाग समझना चाहिए। + लवण समुद्र में नमक जैसा खारा पानी रहता है, कालोदधि समुद्र में मामूली पानी सरीखा पानी है, वारुणी समुद्र में मदिरा जैसा, क्षीरसमुद्र में दूध जैसा, घृतसमुद्र में घी जैसा और असंख्यात समुद्रों में इक्षरस जैसा पानी का स्वाद है। ____ नन्दीश्वर द्वीप में कार्तिक, फाल्गुन और श्राषाढ़ मास के अन्तिम आठ दिनों में (तीनों चौमासी के समय) तथा तीर्थङ्करों के पंचकल्याण आदि शुभ दिनों में देवगण अष्टाह्निका (अठाई) महोत्सव करते हैं। रुचक द्वीप तक जङ्घाचारण मुनि जाते हैं । रुचक द्वीप के मध्य में वलयाकार रुचक पर्वत है, जिस पर ४० दिशाकुमारी देवियों रहती हैं तथा ८ नन्दन वन में और ८ गजदन्त पर्वत पर, यो सब ५६ दिशाकुमारी देवियाँ हैं। अढ़ाई उद्धार सागरोपम अर्थात् २५ कोड़ाकोड़ी उद्धार पल्योपम के जितने समय
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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