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® जैन-तत्त्व प्रकाश
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ओर पश्चिम में नौवीं 'वत्सा' विजय है। इसकी राजधानी 'सुसीमा है । इसके पास चित्रकूट वक्षकार पर्वत है, जिसके पास सुवत्सा विजय है । इसकी राजधानी कुण्डला है । इसके पास 'तप्ततीरा' नदी है । इसके पास ग्यारहवीं 'महावत्सा विजय है । इसकी राजधानी 'अमरावती' है। इसके पास 'वैश्रमण' वक्षकार पर्वत है। इसके पास बारहवीं विजय 'वत्सावत' है। इसकी राजधानी प्रभंकरा है। इसके पास 'मत्तान्तरी' नदी है, जिसके पास तेरहवीं विजय 'रम्य' है । इसकी पद्मावती राजधानी है। इसके पास 'उन्मत्तानीरा' नदी है । इसके पास पन्द्रहवीं 'रमणी' विजय है, जिसकी राजधानी का नाम 'शुमा' है। इसके पास मातंजन कूट पक्षकार पर्वत है । इसके पास सोलहवीं 'मंगलावती' विजय है, जिसमें रत्नसंचया राजधानी है। इसके पास २२००० योजन का भद्रशाल वन आ गया है ।
यह मेरुपर्वत से पूर्व दिशा के महाविदेह क्षेत्र की १६ विजयों का वर्णन है।
मेरुपर्वत से पश्चिम में, निषध पर्वत के उत्तर में, सीतोदा नदी से दक्षिण में,विद्युत् गजदन्त पर्वत के पास सत्तरहवीं 'पद्म' विजय है। इसकी राजधानी 'अश्वपुरी' है। इसके पास 'अंकावती' वक्षकार पर्वत है। इसके पास अठारहवीं 'सुपद्म' विजय है। इसकी राजधानी 'सिंहपुरा' है। इसके पास क्षीरोदा नदी है, जिसके पास उन्नीसवीं 'महापद्म' विजय है। इसकी राजधानी 'महापुरा' है। इसके पास पद्मावती वक्षकार पर्वत है। इसके पास 'पद्मावती' नामक बीसवीं विजय है, जिसकी राजधानी 'विजयपुरा' है। इसके पास शीतस्रोता नदी है। इसके पास इक्कीसवीं 'शङ्ख विजय है । इसकी राजधानी अपराजिता है । इसके पास 'असीविष' वक्षकार पर्वत है। इसके पास बाईसवीं 'नलिन' विजय है। इसकी राजधानी 'अरजा' है। इसके पास अन्तर्वाहिनी नदी है । इसके पास 'कुमुद' विजय है, जिसकी राजधानी का नाम 'अशोका' है । इसके पास 'सुखवाह' वक्षकार पर्वत है और इस पर्वत के पास चौवीसवीं 'नलिनावती' विजय * है। इसकी राजधानी 'बीतशोका' है । * चौकीसवीं नलिनावती विजय क्रम से उतरती हुई मध्य में १००० योजन गहरी है।