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________________ ८४ 1 जैन- तख प्रकाश 1 चौदह हजार नदियों के परिवार से सीता नदी में जाकर मिली है। इससे कच्छविजय के छह खण्ड हो गये हैं । वैताढ्य पर्वत से दक्षिण में, गंगा और सिन्धु नदी के बीच में क्षेमा नगरी राजधानी है । इसमें भरत क्षेत्र के चक्रवर्ती जैसे ही कच्छ - चक्रवर्त्ती होते हैं और वे छह खण्डों पर शासन करते हैं । इस कच्छविजय के पास पूर्व-पश्चिम में १६५६२ योजन लम्बा, नीलवन्त पर्वत के पास ४०० योजन ऊँचा और आगे क्रमशः वृद्धि को प्राप्त होता हुआ सीता नदी के पास ५०० योजन ऊँचा चित्रकूट वक्षकार (विजय की सीमा निर्धारित करने वाला ) पर्वत है । इस पर चार कूट हैं। इसके पास कच्छविजय के समान ही दूसरी सुकच्छविजय है । इसमें 'क्षेमं पुरा ' नामक राजधानी है, जिसके पास नीलवन्त पर्वत के समीप ग्राहावती कुण्ड से निकली हुई, आदि से अन्त तक एक-सी १२५ योजन चौड़ी और २८ योजन गहरी नहर सरीखी ग्राहावती नदी है । यह सीता नदी में जाकर मिली है । इसके पास पूर्व में, कच्छविजय जैसी ही तीसरी महाकच्छविजय है । इसके पास चित्रकूट वक्षकार पर्वत के समान ब्रह्मकूट वक्षकार पर्वत है । इसके पास चौथी कच्छावती विजय है । इसमें अरिष्टवती राजधानी है । कच्छावती विजय के पास ग्राहावती नदी जैसी द्रहवती नदी है । इसके पास पाँचवीं विजय है । इसमें पंकावती राजधानी है । इसके पास नलिनकूट वक्षकार पर्वत है । इसके पास छठी मंगलावर्त्त विजय है, जिसमें मंजूषा राजधानी है । इसके पास हैंगवती नदी है, जिसके पास सातवीं पुष्कर विजय है । इसमें ऋषभपुरी राजधानी है, जिसके पास एक शैलकूट वक्षकार पर्वत है । इसके पास व पुष्कलावती विजय है । इसके पास पूर्व में विजय के बराबर १६५६, योजन पूर्व-पश्चिम लम्बा, दक्षिण में सीता नदी के पास २६२२ योजन चौड़ा, उत्तर में क्रम से घटता घटता नीलवन्त पर्वत के पास 123, जितना चौड़ा 'सीतामुख' वन है । इसके पास पूर्व में जम्बुद्वीप का विजय द्वार है । 1 1 जम्बूद्वीप के विजयद्वार के अन्दर, सीता नदी से दक्षिण दिशा में, पूर्वोक्त सीताख वन जैसा ही दूसरा सीतामुख वम है । विशेषता यह है कि 1 as a fraud के पास 12 योजन चौड़ा है। इसके पास मेरुपर्वत की
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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