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________________ *सिद्ध भगवान् [ ८१ - नीचे से पश्चिम की ओर मुड़कर, पश्चिम महाविदेह क्षेत्र के दो भाग करती हुई, एक-एक विजय में से अट्ठाईस अट्ठाईस हजार नदियों को साथ लेती हुई ५३२००० नदियों के परिवार से परिवृद्ध होकर पश्चिम लवण-समुद्र में मिलती है। निषधपर्वत के पास उत्तर में ३०२०६ योजन लम्बे निषध पर्वत के पास ४०० योजन ऊँचे, ५०० योजन चौड़े, आगे क्रम से उँचाई में बढ़ते हुए और चौड़ाई में घटते-घटते मेरु पर्वत के पास ५०० योजन ऊँचे, अंगुल के असंख्यातवें भाग जितने चौड़े, हाथी के दाँत के समान बाँके आकार वाले दो गजदन्त पर्वत हैं । यथा-(१) पश्चिम में तप्तसुवर्ण जैसे वर्ण वाला विद्युत्प्रभ गजदन्त पर्वत है और (२) पूर्व में हीरे के समान श्वेत वर्ण वाला सौमनस गजदन्त पर्वत है। इन दोनों पर्वतों पर अलग-अलग है और ७ मरुपर्वत की उत्तर दिशा में, रम्यकवास क्षेत्र के पास, दक्षिण में बतलाये हुए निषध पर्वत जितना, नीलम के समान वर्ण वाला नीलवन्त पर्वत है । इसके मध्य में तिगिंछ द्रह के बराबर केसरिद्रह है। उसमें रत्नमय कमलों पर कीर्तिदेवी% सपरिवार निवास करती है। इस द्रह में से दो नदियाँ निकली हैं—नारीकान्ता और सीता। नारीकान्ता नदी उत्तर की तरफ रम्यकवास क्षेत्र के मध्य में होकर ५६००० नदियों के परिवार के साथ पश्चिम लवण समुद्र में जाकर मिलती हैं। सीता नदी दक्षिण तरफ उत्तर कुरुक्षेत्र और झमक-समक पर्वत के मध्य में होकर तथा (१) नीलवन्त (२) उत्तर कुरु, (३) चन्द्र (४) ऐरावत और (५) माल्यवन्त—इन पाँचों द्रहों के मध्य में होकर, भद्रशाल वन के मध्य में बहती हुई मेरु से दो योजन दूर * द्रहों के मध्य में रहने वाली भवनपति देवियों की आयु एक पल्योपम की है। उनके ४००० हजार सामानिक देव हैं,१६००० त्रात्मरक्षक देव हैं, ८००० आभ्यन्तर परिषद के देव हैं,१०००० मध्य परिषद् के देव हैं,१२००० बाह्य परिषद के देव हैं. ७ अनीकनायक देव है, ४ महत्तरी देवियाँ हैं, १२०००००० आभियोग्य देव हैं। इन सबके रहने के लिए लग-अलग रत्नमय कमल हैं और १०८ भूषण रखने के कमल हैं। इस प्रकार सब १२०५०१२० कमल हैं, जिन पर रत्नमय भवन हैं ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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