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® जैन-तत्त्व प्रकाश
अग्रमहिषियाँ हैं । प्रत्येक अग्रमहिषी के हजार-हजार का परिवार है । सात अनीक हैं। तीन परिषद् हैं। आभ्यन्तर परिषद् के ८००० देव, मध्य परिषद् के १०००० देव और बाह्य परिषद् के १२००० देव हैं । इन सोलहों प्रकार के देवों की श्रायु जघन्य १०००० वर्ष की और उत्कृष्ट एक पल्योपम की है। देवियों की जघन्य आयु १०००० वर्ष की और उत्कृष्ट आधे पल्योपम की है।
व्यन्तर और वाणव्यन्तर देव चंचल स्वभाव के धारक होते हैं। मनोहर नगरों में देवियों के साथ नृत्य-गान करते हुए, इच्छानुसार भोग भोगते हुए और पूर्वोपार्जित पुण्य के फलों का अनुभव करते हुए विचरते हैं । विविध अन्तरों में रहने कारण इन्हें 'व्यन्तर' कहते हैं । वन में भ्रमण करने के अधिक शौकीन होने कारण इन्हें वाण व्यन्तर कहते हैं।