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ॐ सिद्ध भगवान् ®
क्षेत्र वेदनाएँ
नरक की भूमि के स्वभाव से होने वाली वेदनाएँ क्षेत्रवेदनाएँ कहनाती हैं । वह दस प्रकार की होती हैं । उनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है:
(१) अनन्त क्षधा-जगत् में जितने भी खाद्य पदार्थ हैं, वे सब एक नारकी को दे दिये जाएँ तो भी उसकी भूख न मिटे, इस प्रकार की दुधा से नारकी सदैव आतुर रहते हैं।
(२) अनन्त तृषा-संसार के सहस्र समुद्रों का जल एक नारकी को दे दिया जाय तो भी उसकी प्यास न बुझे, इस प्रकार की प्यास से नारकी सदैव पीड़ित रहते हैं।
(३) अनन्त शीत-एक लाख मन का लोहे का गोला, शीतयोनि वाले नरक में छोड़ा जाय तो तत्काल शीत के प्रभाव से छार-छार होकर बिखर जाय । नरक में इतनी भयानक सर्दी है । कल्पना कीजिए अगर कोई वहाँ के नारकी को उठाकर हिमालय के बर्फ में सुला दे तो वह उसे बड़ा ही आराम का स्थान समझेगा । ऐसी घोर सर्दी वहाँ सदैव पड़ती रहती है।
(४) अनन्त ताप-नरक के उष्णयोनिक स्थान में एक लाख मन का लोहे का गोला छोड़ दिया जाय तो तत्काल गल कर वह पानी-पानी हो जाय । अगर उस जगह के नारकी को उठा कर कोई जलती भट्ठी में डाल दे तो नारकी जीव बड़ा ही आराम समझे और उसे नींद आजाए। ऐसी भयानक गर्मी वहाँ सदैव पड़ती रहती है ।
(५) अनन्त महाज्वर-नारकी के शरीर में सदैव महाज्वर बना रहता है । इस महाज्वर के कारण उसके शरीर में दुस्सह जलन होती रहती है।
(६) अनन्त खुजली–नारकी सदैव अपना शरीर खुजलाते रहते हैं ।
(७) अनन्त रोग—जलोदर, भगन्दर, खाँसी, श्वास, कुष्ठ , शूल आदि १६ महारोगों और ५, ६८, 88, ५८५ प्रकार के छोटे रोगों से नारकी सदा पीड़ित रहता है।