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________________ (५८) और भगवान को वन्दना-नमस्कार करने के अनन्तर निवेदन करने लगे___भगवन् ! लोक पहले है, अलोक पीछे है? या अलोक पहले है, लोक पीछे है ? भगवान-रोह ! लोक और अलोक पहले भी है और पीछे भी अर्थात् ये दोनो पदार्थ शाश्वत है, नित्य है । इन मे कोई पहले हो और कोई पीछे, ऐसी बात नही है।। रोह-भगवन् ! जीव पहले है कि अजीव पहले है ? भगवान- रोह ! इसे लोक और अलोक के समान समझ लेना चाहिए। इसी प्रकार, भव्य, अभव्य, सिद्धि (मुक्ति), असिद्धि (ससार), सिद्ध (मुक्त), प्रसिद्ध (ससारी) के सम्बन्ध मे भो समझ लेना चाहिए। ___ रोह-भगवन् ! अण्डा पहले है या मुर्गी ? मुर्गी पहले है या अण्डा ? भगवान-रोह ! अण्डा कहा से उत्पन्न होता है ? रोह-भगवन् ! मुर्गी से। भगवान-रोह ! मुर्गी कहा से उत्पन्न होती है ? रोह-भगवन् ! अण्डे से। भगवान-रोह ! जैसे अण्डा और मुर्गी इन दोनो में एक पहले है, एक पीछे है, ऐसा नही कहा जा सकता है, क्योकि ये दोनो ही शाश्वत है, नित्य है । वैसे ही लोक और अलोक आदि भी ऐसे ही है, शाश्वत है। रोह-भगवन् ! लोकान्त पहले है, अलोकान्त पीछे है ? या अलोकान्त पहले है, लोकान्त पीछे है ?
SR No.010013
Book TitleJain Agamo me Parmatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1960
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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