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(८०) ॥ अथ सप्त नयों द्वारा सिद्ध शब्दका वर्णन ॥
नैगम नयके मतमें जो आत्मा भव्य है वे सर्व ही सिद्ध है क्योंकि उनमें सिद्ध होनेकी सत्ता है १॥ संग्रह नयके मतमें सिद्ध संसारी जीवोंमें कुछ भी भेद नहीं हैं, केवल सिद्ध आत्मा काँसे रहित हैं, संसारी आत्मा काँसे युक्त हैं २ ॥ व्यवहार नयके मतमें जो विद्या सिद्ध हैं वा लब्धियुक्त हैं और लब्धि द्वारा अनेक कार्य सिद्ध करते हैं वे ही सिद्ध हैं ३ ।। ऋजुसूत्र नय जिसको सम्यक्त्व प्राप्त हैं और अपनी आत्माके स्वरूपको सम्यक् प्रकारसे देखता है उसका ही नाम सिद्ध है ४॥ शब्द नयके मतमें जो शुक्ल ध्यानमें आरूढ़ है ओर कष्टको सम्यक् प्रकारसे सहन करना गजमुखमालवत् उसका ही नाम सिद्ध है ५॥ समाभिरूढ़ नयके मतमें जो केवल ज्ञान केवल दर्शन संपन्न १३ वें वा १४ वें गुणस्थानवी जीव है उनका ही नाम सिद्ध है ६॥ एवंभूत नयके मतमें जिसने सर्व कर्मों को दूर कर दिया है केवल ज्ञान केवल दर्शन संयुक्त लोकाग्रमें विराजमान है ऐसे सिद्ध आत्माको ही सिद्ध माना गया है क्योंकि सकल कार्य उसी आत्माके सिद्ध हैं ७॥