________________
(७५ ) ऋजु सूत्र है क्योंकि यह नय सांपति कालको ही मानता है। शब्द नयसे शब्दोंकी व्याकरण द्वारा शुद्धि की जाती है जैसेकि प्रकृति, प्रत्यय, यथा धर्म शब्द प्रकृतिरूप है इसको स्वौजशं अमौट् शस् इत्यादि प्रत्ययों द्वारा सिद्ध करना तथा भू सत्तायां वर्त्तते इस घातुके रूप दश लकारोंसे वर्णन करने यह सर्व शब्द नयसे बनते हैं ५। जो पदार्थ स्वगुणों में आरूढ है वही समभिरूढ नय हैं तथा शब्दभेद हो अपितु अर्थभेद न हों जैसेकि शक इन्द्रः पुरंदर मघवन् इत्यादि । यह सर्व शब्द समभिरूढ नयके मतसे बनते हैं ६ । क्रिया प्रधान करके जो द्रव्य अभेद रूप हैं उनका उसी प्रकारसे वर्णन करना वही एवंभूत नय हैं ७॥ सो सम्यग्दृष्टि जीवोंको सप्त नय ही ग्राह्य है किन्तु मुख्य-- तया करके दोइ नय है ।। यथा
पुनरप्यध्यात्मभाषया नया उच्यन्ते । तावन्मूलनयो द्वौ छौ निश्चयो व्यवहारश्च । तत्र निश्चयनयो अन्नेदविषयो व्यवहारलेदविषयः॥
भाषार्थ:-अपितु अध्यात्म भाषा करके नय दो ही हैं जैसे , कि निश्चय नय १ व्यवहार,नय २। सो निश्चय अभेद विषय है,