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(७१) भाषार्थ:--संग्रह नय भी द्विप्रकारसे वर्णन किया गया है जैसे कि-सामान्य संग्रह विशेष संग्रह; अपितु सामान्य संग्रह इस प्रकारसे है, जैसेकि सर्व द्रव्य परस्पर अविरोधी भावमें हैं अर्थात् सर्व द्रव्योंका परस्पर विरोध भाव नहीं हैं, अपितु विशेष संग्रहमें, यह विशेष है कि जैसेकि जीव द्रव्य परस्पर अविरोधी भावमें है क्योंकि जीव द्रव्यमें उपयोग लक्षण वा चेतन शक्ति एक सामान्य ही है सो सामान्य द्रव्यों से एक विशेष द्रव्यका वर्णन करना उसीका ही नाम संग्रह नय है ।
॥ अथ व्यवहार नय वर्णन ॥ व्यवहारोऽपि द्विधा सामान्यसङ्ग्रहभेदको व्यवहारो यथा द्रव्याण जीवाजीवाः । विशेषसंग्रहभेदको व्यवहारो यथा जीवा संसारिणो मुक्ताश्च इति व्यवहारोऽपि द्विधा ॥
भाषार्थ:--व्यवहार नय भी द्वि प्रकारसे ही कथन किया गया है जैसेकि सामान्य संग्रहरूप व्यवहार नय जैसेकि द्रव्य भी द्वि प्रकारका है यथा जीवं द्रव्य अजीव द्रव्य || अपितु विशेष संग्रहरूप व्यवहार इस प्रकारसे है जैसोक जीव संसारी १ और मोक्ष २ क्योंकि संसारी आत्मा काँसे युक्त हैं और मोक्ष आत्मा काँसे रहित हैं, इस लिये ही उनके