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विशुद्धि है । सूक्ष्म संपराय चारित्र गुण प्रमाणका यह लक्षण है कि यह चारित्र दशम गुणस्थानवत्ती जीवको होता है क्यों. कि सूक्ष्म नाम तुच्छ मात्र संपराय नाम संसारका अर्थात् जिसका स्तोक मात्र रह गया है लोभ, उसका ही नाम सूक्ष्म संपराय चारित्र गुण प्रमाण है। यथाख्यात चारित्र उसका नाम है जो सर्व लोकमें प्रसिद्ध है कि यथावादी हैं वैसे ही करता है अर्थात् जिसका कथन जैसे होता है वैसे ही क्रिया करता है जोकि ११ गुणस्थानसे १४ गुणस्थानवी जीवोंको होता है, अपितु जो क्षपक श्रेणी वत्ती जीव है वे दशम स्थानसे द्वादशम गुणस्थानमें होता हुआ १३ वें गुणस्थानमें केवल ज्ञान करके युक्त हो जाता है फिर चतुर्दश गुणस्थानमें प्रवेश करके मोक्ष पदको ही प्राप्त हो जाता है ।।
मूल ॥ सामाश्य चरित्त गुणप्पमाणे दु. विहे पं. तं. इतरियए आवकहियए डेउवगवणे सुविहे पं. तं. साश्यारेय निरश्यारेय परिहारे
१ पंच चारित्रोंके मेद विवाहप्रज्ञप्ति इत्यादि सूत्रोंसे जानने ।