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(५३) भापार्थः-(पूर्वपक्षः) अनागत कालके पदार्थों का बोधजन्य अनुमान प्रमाण किस प्रकारसे वर्णन किया गया है ? (उत्तरपक्षा) मैसेकि धूमसे दिशाओं आच्छादित हो रही हैं और रजादि करके मेदनी युक्त है अर्थात् पृथ्वीमें रज बहुत ही हो रही हैं, पुद्गक परस्पर अप्रतिवद्ध भावको प्राप्त हैं अर्थात् वर्षाके अनुकूल नही है, वायु नरतादि कूोंमें विद्यमान है और अग्निमंडळके नक्षत्र था व्यायवमंडळके नक्षत्रोंका योग हो रहा है, इसी प्रकार अन्य कोई अप्रशस्त उत्पातको देखकर अनुमान होता कि कुष्ठि होनेके चिन्ह दीखते है अर्थात् कुष्टि होवेगी। यही अनागतकाळ ग्रहण अनुमान प्रमाण है; इसीके द्वारा भविष्यत कालके पदार्थों का ___ अग्निमंडल के नक्षत्रों के निम्नलिखित नाम है || कृतिका १ विशाखा २ पूर्वमाद्रवपद ३ मघा ४ पुष्य ५ पूर्वाफाल्गुणी ६ मरणी ७॥ अथ व्यायव मंडलंके नक्षत्र लिखते हैं । जैसेकि-चित्रा १ हस्त २ स्वाति ३ मृगशिर ? पुनर्वसु ५ उतराफाल्गुणी ६ अश्वनी ७॥ अपितु वारुणी मंडलके नक्षत्र यह है-अश्लेपा १ मूल २ पूर्वापाड़ा ३ रेवती ४ शतमिशा ५ आर्द्रा ६ उत्तरामाद्रवपद
॥अथ माहेन्द्र मंडलके निम्न हैं-ज्येष्टा १ रोहणी २ अनुराधा ५ अवण ४ धनेष्टा ५ उतरापाड़ा ६ अभिजित ७ ॥