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मूल ॥ सेकिंतं विसेसदि २से जहा नामए केइ पुरिस्से बहुणं मज्जेपुवं दिहं पुरिसं पञ्चनि जाऐका यं पुरिसे एवं करिसावणे ||
भाषार्थः - श्री गौतम प्रभुजी भगवान् से पृच्छा करते हैं कि - हे भगवन् ! विशेष दृष्ट अनुमान प्रमाण किस प्रकारस है ? भगवान् उत्तर देते हैं कि हे गौतम! विशेष दृष्ट अनुमान प्रमाण इस प्रकारसे है जैसे कि किसी पुरुषने किसी अमुक व्यक्ति को किसी अमुक सभायें बैठे हुएको देखा तो मनमें वि. चार किया कि यह पुरुष मेरे पूर्वदृष्ट है अर्थात् मैंने इसे कहीं पर देखा हुआ है, इस प्रकारसे विचार करते हुएने किसी लक्षणद्वारा निर्णय ही कर लिया कि यह वही पुरुष है जिसको मैंने अमुक स्थानोपरि देखा था । इसी प्रकार मुद्राकी भी परीक्षा करलो अर्थात् बहुत मुद्राओं से एक मुद्रा जो उसके पूर्व ह पृथी उसको जान लिया उसका ही नाम विशेष दृष्ट अनुमान प्रमाण है । अपितु - मूल
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समास तिविदं गहणं नव
इ तं. तीयकालग्गणं पष्पणकालग्गहणं -
गागयकालग्गणं ॥