________________ केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष है || अवधि ज्ञानके पदभेद हैं जैसेकि अनुग्रामिक 1 (साथही रहनेवाला), अनानुग्रामिक 2 (साथ न रहनेवाला), वर्द्धमान (द्धि होनेवाला),हायमान 4 (हीन होनेवाला), प्रतिपातिक ५(गिरनेवाला),अपतिपातिकक्ष (न गिरनेवाला); और मनःपर्यवज्ञानके दो भेद है जैसे कि-ऋजुमति 1 और विपुलमति 2 / केवलज्ञानका एक ही भेद है क्योंकि यह सकस प्रत्यक्ष है। इसी वास्ते इस ज्ञानचालेको सर्वज्ञ वा सर्वदशी कहते हैं / इनका पूर्ण विवर्ण श्री नंदीजी सूत्रसें देखो / यह प्रत्यक्ष प्रमाणके भेद हुए अव अनुमान प्रमाणका स्वरूप लिखता हूं। __ मूल ॥सेकिंतं अणुमाणे 5 तिबिहे पं. तं. पुत्ववं सेसवं दिहि साहम्मवं सेकिंतं पुववं 5 मायापुत्तं जहाणष्टं जुवाणं पुणरागयंकाई प. चभि जाणिज्जा पुलिंगेण केणइतरक्खइयणवा वएणेणवा मसेणवा लंबणेणवा तिलएणवा सेतं पुत्ववं // भापार्थ:-शिष्यने गुरुसे प्रश्न कियाकि हे भगवन् अनु