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(१५) करना क्योंकि सुख दुःखका अनुभव जीव द्रव्यको ही है न तु अन्य द्रव्यको ॥
पुनः सूत्र इस कथनको इस प्रकारसे लिखते हैं ।
नाणं च दसणं चेव चरितं च तवो तहा वीरियं जवओगोय एवं जीवस्स लक्खणं ॥ उ० सू० अ० २७ गा० ११ ॥ ___ वृत्ति--ज्ञानं ज्ञायतेऽनेनेति ज्ञानं च पुनदृश्यते अनेनेति दर्शनं च पुनश्चरित्रं क्रियाचेष्टादिकं तथा तपो द्वादशविधं तथा वीर्य वीर्यान्तराय क्षयोपशमात् उत्पन्नं सामर्थं पुनरूपयोगो ज्ञानादिषु एकाग्रत्वं एतत् सर्व जीवस्य लक्षणं ॥ ११ ॥
भावार्थ:-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य, तथा उपयोग यही जीवके लक्षण हैं, क्याकि ज्ञान दर्शनमय आत्मा अनंत शक्ति संपन्न है । पुनः चरित्र और तप यह भी आत्माके साध्य धर्म है क्योंकि आत्मा ही तपादि करके युक्त हो सकता है, न तु अनात्मा ।
प्रश्न--जब आत्मा द्रव्य अनंत वीर्य करके युक्त है तब सिद्धात्मा भी अनंत वीर्य करके युक्त हुए तो फिर उनका चीर्य सफलताको कैसे प्राप्त होता है ?