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हो जाते हैं। आपतु यथाशक्ति इनको धारण करके फिर रात्रीभोजनका भी परिहार करना चाहिये; इनमें अनेक दोपोंका समूह है। फिर श्रावक २१ गुण करके संयुक्त हो जावे, वे गुण उक्त नियमोंको विशेष लाभदायक हैं और सर्व प्रकारसे उपादेय हैं, सत् पथके दर्शक हैं, अनेक कुगतियोंके निरोध करनेवाले हैं, इनके आसेवनसे आत्मा शान्तिके मंदिरमें प्रवेश कर जाता है । ____ अथ एकविंशति श्रावक गुण विषय ॥ धम्मरयणस्स जुग्गो अक्खुद्दोरूववं पगश्सोमो॥ लोअपियो अक्कूरो असहो सुदक्षिणो॥१॥ लजायो दयालू मन्नबो सोमदिठ्ठो गुणरागी॥ सकह सपक्खजुत्तो सुदीहदंसी विसेसएणू ॥शा वहाणुग्गो विणियो कयएणुओ परहियत्थकारोय।। तहचेव लद्ध लक्खो श्गवीस गुणो हवश् सहो॥३॥ • भाषार्थ:-जो जीव धर्मके योग्य है वह २१ गुण अवश्य ही धारण करे क्योंकि गुणोंके धारणके ही प्रभावसे गृहस्थ सु.