________________
( १७० ) फिर पौषधोपचास सम्यक् प्रकारसे पालन किया न हो ५॥ इस प्रकारसे इन पांचों ही अतिचारोंको वर्जके तृतीय शिक्षाबत. गृहस्थी लोग सम्यक् प्रकारसे धारण करें। फिर चतुर्थ शिक्षाबभी सम्यक् प्रकारसे आराधन करे ।।
चतुर्थ शिक्षात्रत
अतिथि संविनाग ॥ महोदयवर ! चतुर्थ शिक्षाव्रत अतिथि संविभाग है जिसका अर्थ ही यही है आतिथियोंको संविभाग करके देना अर्थात् जो कुछ अपने ग्रहण करनेके वास्ते रक्खा है उसमेंसे आतिथियोंका सत्कार करना ।। अपितु जो अतिथि ( साधु) को दिया जाये वे आहारादि पदार्थ शुद्ध निर्दोष कल्पनीय हों किन्तु दोषयुक्त अशुद्ध अकल्पनीय आहारादि पदार्थ न देने अच्छे हैं क्योंकि नियमका भंग करना वा कराना यह महा पाप है। अपितु वृत्ति के अनुसार आहारादिके देनेसे कर्मोंकी निर्जरा होती है, वृत्तिके विरुद्धदेनेसे पापका बंध होता है । इस लिये दोषोंसे रहित प्राशूक एषनीय आहारादिके द्वारा अतिथि संविभाग नामक व्रतको सम्यक् प्रकारसे आराधन करे और पांचों ही अतिचारोंका भी परिहार करे, जैसेकि