________________
(१६८) . . बकाशिक व्रत है और इसी व्रतमें चतुर्दश नियमोंका धारण किया जाता है । अपितु जिस प्रकारसे नियम करे उसी प्रकारसे पालन करे किन्तु परिमाणकी भूमिकासे वाहिर पांचासव सेवन का प्रत्याख्यान करे। अपितु इस व्रतके धारण करनेसे बहुत ही पापोंका प्रवाह बंध हो जाता है और इस व्रतका भी पांचो अतिचारोंसे रहित होकर पालण करे, जैसे कि
आणवणप्पजग्गे पेसवणप्पजग्गे सहाणुवाय रूवाणुवाय वहियापोग्गल पक्खेवे ॥
भाषार्थ:-प्रमाणकी भूमिकासे वाहिरकी वस्तु आज्ञा करके मंगवाई हो १ तथा परिमाणसे वाहिर भेजी हो २ और शब्द करके अपनेको प्रगट कर दिया हो ३ वा रूप करके अपने आपको प्रसिद्ध कर दिया हा ४ अथवा किसी वस्तु पर पुद्गल क्षेप करके उस वस्तुका अन्य जीवोंको बोध करा दिया हो५॥ सो इन पांच ही अतिचारोंको परित्याग करके दशवा देशावकाशिक व्रत शुद्ध धारण करे । और फिर पर्व दिनों में तथा मासमें षट् पौषध करे क्योंकि पौषध व्रत अवश्य ही धारण करना चाहिये जिसके धारण करनेसे कर्मोंकी निर्जरा वा तप कर्म दोनों ही सिद्ध हो जाते हैं।