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भाषार्थ:-इस व्रतकी रक्षा अर्षे निम्न लिखित अतिचार अवश्य ही वर्जे, जैसेकि-चोरीकी वस्तु (माल) लेनी क्योंकि इस कर्मके द्वारा जो लोग फल भोगते हैं वह लोगोंके दृष्टिगोचर ही हैं । और चोरोंकी रक्षा वासहायता करना २। राज्य विरुद्ध कार्य करने क्योंकि यह कार्य परम भयाणक दशा दि. खलानेवाला है और तृतीय व्रतको कलंकित करनेवाला है । फिर कूट तोल कूट ही माप करना (घट देना, वृद्धि करके लेना) ४ । और शुद्ध वस्तुओंमें अशुद्धवस्तु एकत्र करके विक्रय करना क्योंकि यह कर्म यश और सत्यका दोनोंका ही घातक है। इस लिये पांचो अतिचारोंको परित्याग करके तृतीय व्रत शुद्ध धारण करे।। .
चतुर्थ स्वदार संतोष व्रत ॥ मित्रवरो कामको वशी करना और इन्द्रियों को अपने चशमें करना यही परम धर्म है जैसे इंधनसे अग्नि वृतिको प्राप्त नही होती केवळ पाणी द्वारा ही उपशमताको प्राप्त हो जाती हैं, इसी प्रकार यह काम अग्नि संतोष द्वारा ही उपशम हो सक्ती है, अन्य प्रकारसे नहीं, क्योंकि यह ब्रह्मचर्य व्रत आत्मशक्ति, मुक्तिके अक्षय सुख, शरीरको निरोगता, उत्साह, हर्ष, चित्तकी