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(१) सबाज पाणावायाचं वेरमणं ॥
सर्वथा प्रकारसे प्राणातिपातसे नित्ति करना अर्थात् स. र्वथा प्रकारसे जीवहिंसा निवर्त्तना जैसेकि मनसे १ वचनसे २ कायासे ३, करणेसे १ करानेसे २ अनुमोदनसे ३ क्योंकि यह अहिंसा व्रत प्राणी मात्रका हितैषी है और दया सर्व जीवोंको शान्ति देनेवाली है। फिर दया तप और संयमका मूल है, सत्य और ऋजु भावको उत्पन्न करनेवाली है, दुर्गतिके दुःखोंसे जीवकी रक्षा करनेवाली है अपितु इतना ही नही कितु कर्मरूपि रज जो है, उससे भी आत्माको विमुक्ति कर देती है, शत स. हस्रों दुःखोंसे आत्माको यह दया विमोचन करती है, महर्षियों करके सेवित है, स्वर्ग और मोक्षके पथकी दया दर्शक है, ऋधि, सिद्धि, शान्ति, मुक्ति इनके दया देनेवाली है।। पुनःप्रा. णियोंको दया आधारभूत है जैसे क्षुधातुरको भोजनका आधार है, पिपासेको जलका, समुद्रमें पोतका, रोगीको ओषधिका; भयभीतको शूरमेका आधार होता है । इसी प्रकार सर्व माणियोंको दयाका आधार है, फिर सर्व प्राणि अभयदानकी प्रार्थना करते रहते हैं, जो सुख है वे सर्व दयासे ही उपलब्ध होते हैं।