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( १०१) अपेक्षा श्रुत अनंत ही है क्योंकि क्षयोपशम भाव आत्मगुण है इस लिये श्रुत भी अपर्यवसान है ४ ॥ (११) गमिकश्रुत दृष्टिवाद है। (१२) अगमिकश्रुत आचारांगादि श्रुत हैं । (१३) अंगप्रविष्टश्रुत द्वादशाङ्ग सूत्र हैं ।। (१४) अनंगप्रविष्ट श्रुत अंगोंसे व्यतिरिक्त आवश्यकादि सूत्र है। इनका पूर्ण वृत्तान्त नंदी आदि सिद्धान्तों से जानना ॥
अवधि ज्ञानका यह लक्षण है कि जो प्रमाणवर्ती पदार्थोंको देखता है वा जो रूपि द्रव्य है उनके देखनेकी शक्ति रखता है जिसके सूत्रमें पद भेद वर्णन किये गये हैं जैसेकि आनुगामिक ( सदैव काल ही जीवके साथ रहनेवाले ) अनानुगामिक (जिस स्थानपे अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है यदि वहां ही बैठा रहें तो जो इच्छा हो वही ज्ञानमें देख सक्ता है, जब वे ऊठ गया फिर कुछ नही देखता ) द्धिमान (जो दिनप्रतिदिन वृद्धि होता है ) हायमान (जो हीन होनेवाला है ) प्रतिपाति (जो होकर चला जाता है) अप्रतिपाति ( जो होकर नहीं जाता है) यह भेद अवधिज्ञानके हैं । और मनःपर्यवज्ञान उ. सफा नाम है जो मनकी पर्यायका भी ज्ञाता हो। इसके दो भेद है जैसेकि-ऋजुमति अर्थात् सार्द्ध द्वीपमें जो संज्ञि पंचिंद्रिय जीव