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श्रुत उसका नाम है जो शब्द सुनकर पदार्थका ज्ञान तो पूर्ण हो जाये अपितु वह शब्द उस भांति लिखने में न आवे जैसे छीक, मोरका शब्द इत्यादि ॥ (३) संज्ञिश्रुत उसे कहते हैं जिसको फालिक उपदेश (सुनके विचारनेकी शक्ति ) हितोपदेश (सुनकर धारणेकी शक्ति) दृष्टिवादोपदेश (क्षयोपशम भावसे वस्तुके जाननेकी शक्तिका होना तथा क्षयोपशम भावसे संज्ञि भावका प्राप्त होना) यह तीन ही प्रकार शक्ति प्राप्त हो उसका नाम संजिश्रुत है । (४)असंज्ञिश्रुत उसका नाम है जिन आत्माओंमें कालिक उपदेश और हितोपदेश नहीं है केवल दृष्टिवादोपदेश ही है अर्थात् क्षयोपशमके प्रभावसे असंज्ञि भावको ही प्राप्त हो रहे हैं । (५) सम्यग्श्रुत-जो द्वादशाङ्ग सूत्र सर्वज्ञ प्रणीत हैं अथवा आप्त प्रणीत जो वाणी है वे सर्व सम्पगश्रुत है ।। (६) मिथ्यात्वश्रुत-जो सम्पग् ज्ञान सम्यग् दर्शन सम्पग् चारित्रसे वर्जित ग्रंथ हैं जिनमें पदार्थोंका यथावत् वर्णन नहीं किया गया है और अनाप्त प्रणीत होनेसे वे ग्रंथ मिथ्यात्वचत हैं। (७) सादिश्रुत उसको कहते हैं जिस समय कोई पुरुप श्रत अध्ययन करने लगे उस कालकी अपेक्षा वे सादिश्रुत है । क्षेत्रकी अपेक्षासे पंच भरत पंच ऐरवत क्षेत्रोंमे द्वादशांग सादि हैं, तीर्थकरोका विरह आदिका होना कालसे उत्सप्पिणि अवसप्पिणिका