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भाषार्थ:-श्री भगवान् वर्द्धमान स्वामी स्कंधक संन्यासीको लोगका स्वरूप निम्न प्रकारसे प्रतिपादन करते हैं कि हे स्कंधक ! द्रव्यसे लोक एक है इस लिये सान्त है १ । क्षेत्रसे लोक असंख्यात योजनोंका दीर्घ वा विस्तीर्ण है और असं. ख्यात योजनोंकी परिधिवाला है इस लीये क्षेत्रसे भी लोक सान्त है २ । कालसे लोग अनादि है अर्थात् किसी समयमें भी लोगका अभाव नहि था, अब नही है, नाही होगा अर्थात् उत्पत्ति रहिन है, नित्य है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है, किन्तु पंच भरत पंच ऐरवय क्षेत्रों में उत्सप्पिणि काल अवसाप्पिणि काल दो प्रकारका समय परिवर्तन होता रहता है और एक एक कालमें पद षट् समय होते हैं जिसमें पद् वृद्धिरूप पट हानीरूप होते हैं अपितु पदा. योका अभाव किसी भी समयमें नही होता, किन्तु किसी वस्तुकी वृद्धि किसीकी न्यूनता यह अवश्य ही दुआ करती है। इनका स्वरूप श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्तिसे जानना । अपितु कालसे लोग अ. नादि अनंत है क्योंकि जो लोग जीव प्रकृति ईश्वर यह तीनोंको अनादि मानते हैं और आकाशादिकी उत्पत्ति वा प्रलय सिद्ध करते हैं तो भला आधारके विना पदार्थ कैसे ठहर सकते हैं। इस लिये लोगके अनादि माननेमें कोई भी वाधा नही पड़ती