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( २ ) सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः ॥
सो इस सूत्रमें यह सिद्ध किया है कि सम्यग् दर्शन से सम्यग् ज्ञान होता है, फिर सम्यग् ज्ञान से सम्यग् चारित्र प्रगट हो जाता है, किन्तु तीनोंके एकत्व होनेपर जीव मोक्षको प्राप्त होते हैं, तथा यह तीनों ही मोक्षके मार्ग हैं | इससे सिद्ध हुआ कि विना दर्शनके जीव मोक्षमें नहीं जा सक्ते हैं, क्योंकि दर्शनके बिना अन्य गुण भी सम्यक् प्रकारसे प्रादुर्भूत नहीं होते हैं ॥ यथा
Savag
मूल सूत्रम् ॥
नादंस पिस्स नाणं नाणेण विना न हुंति चरणगुणा अगुणिस्स नत्थि मोक्खो नत्थि - मोक्खस्स निवाणं ॥ उत्तराध्ययन सू० अ० १७
गाथा ३० ॥
संस्कृत टीका - अदर्शनिनः सम्यक्तरहितस्य ज्ञानं नास्ति इत्यनेन सम्यक्तं विना सम्यक् ज्ञानं न स्यादित्यर्थः । ज्ञानंविना चारित्रगुणाश्चारित्रं पञ्चमहात्रतरूपं तस्य गुणाः पिण्डविशुद्धयादयः करण चरण सप्ततिरूपाः न भवति । अगुणिनः चारित्र