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जन-शिलालेख संग्रह
( दो हमेगाके श्लोक ) महाराज -मुखाज्ञात्या मारिषेण त्वङ्कारेण
लिखितेय ताम्र-पट्टिका
[ EC, X, Malur tl, n° 72. ]
अनुवाद - कोङ्गणिव धर्म महाधिराज जाह्नवी (या गंग)कुलके निर्मल आकाश मे चमकनेवाले सूर्य थे; वे काण्वायनसगोत्र के थे । इनके पुत्र Hraaafधर्ममहाधिराज थे, जो एक 'दत्तकसूत्रवृत्ति' के प्रणेता थे ।
इनके पुत्र हरिवर्मा - महाधिराज थे ।
इनके पुत्र विष्णुगोप- महाधिराज थे ।
इनके पुत्र माधववर्म-धर्म महाधिराज थे, जो कलियुगकी कीचड़ में फसे हुए धर्मरूपी बैलको निकालने से हमेशा सन्नद्ध रहते थे I
इनके पुत्र कोङ्गणिवर्म-धर्म- महाधिराजने जो कि कलियुगी युधिष्ठिर कहलाते थे, अपने कल्याणकेलिये, अपने बढ़ते हुए राज्यके प्रथम वर्ष फागुन सुदी पञ्चमीको, अपने उपाध्याय परमाईत ( भक्तजैन ) विजयकीर्तिकी सम्मतिसे, मूलसंघके चन्द्रनन्दि इत्यादिके द्वारा प्रतिष्ठापित उरनूर के जैन मन्दिरको कोरिकुन्द - देशसेका वेन्नेल्करनि गाँव दिया था, और पेरूर एवानि अडिगल्के जिनमन्दिरमै बाहरकी चुझीके कार्षापण ( या धन ) का चतुर्थ भाग दिया था ।
हमेशा शापात्मक ( imprecatory ) श्लोक | महाराज अपने मुँहसे जैसा बोलते जाते थे, मारिषेण स्वट्टकार वैसा ही इन ताम्र-पट्टिकाओपर खोदता जाता था ।
१ ८० रत्तीके तौलके ताम्बेके सिके, जो प्राचीनतम देशी मुद्राके थे । ( डा० वूल्हरकी Grundress में रैपसनका ' Indian Coins' नामका लेख देखो 1 )