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जैन- शिलालेख संग्रह
पकी पत्नी दत्ताने महाभोगता ( महासुख ) के लिये यह दानधर्म किया । भगवान् ऋषभदेव प्रसन्न होवें ।
[El, 1, n° XLIII, n° 8]
५७
वाचकस्य
आतपिको ग्रहबलस्य
अनुवाद - वाचक आर्य ककसम्त ( कर्कशघर्षित ) के शिष्य आतपिक ग्रहलके आदेश से |
मथुरा - प्राकृत ।
[हु० सवत् ६२ ] अर्य-ककसघस्तस्य शिष्या
निर्वर्तन
इस शिलालेखसे मालूम पड़ता है कि किसी मुनिके आदेशसे जैन श्राविका वैहिकाने एक प्रतिमाका दान किया ।
[1A, XXXIII, p. 105 106, n° 19]
५८
मथुरा - प्राकृत |
[हु० वर्ष ६२ ]
१. सिद्ध । स ६०२ व २ दि ५ एतस्य पुवय वाचकस्य आयकर्कुहस्थ [ स ]
२ वारणगणियस शिपो ग्रहवलो आतपिको तस निवर्तना । अनुवाद - सिद्धि हो । वर्ष ६२, वर्षाऋतुका २ रा महीना, दिन ५, इस दिन, वारणगणके चाचक आय-कर्कुहस्य ( आर्य कर्कशवर्षित) के शिष्य आपिक ग्रहबल थे । उनकी प्रेरणा से
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[El, II, n° XIV,
५९
मथुरा - प्राकृत !
n°
19]
[
] वर्ष ७९
अ. १. स ७०९ - ४ दि २० एतस्या पुर्व्वाय कोड़िये गणे
वराया शाखाया