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________________ जैन-शिलालेख संग्रह ४६ मथुरा-प्राकृत-भन्न [हुविक वर्ष ४४] अ मू-नमशर [स] नममहरजस्य हुविक्षस्य सब [स] रे ४०४ हनग [स्य ] मस ३ दिविस २ ए [न] ब. [स्या] पूर्वय [i] . ' गणे अर्थचेटिये कुले हरीतमालकटिय शि] राख .... चिक स्य ] हगिनटिअ शिसो ग ... नागसेणस्य नि .... अनुवाद- स्वस्ति । नमः । प्रतापी (1) महाराज हुविष्कके ४४ वें वर्षकी ग्रीष्म ऋतुके तीसरे महीनेके द्वितीय दिवस, [वारण] गण, अर्य चेटिय (आर्य-चेटिक) कुल, हरीतमालकढि (हरीतमालगढी) शाखाके वाचक हगिनदि (भगनन्दि') के शिष्य आर्य नागसेनके आदेशसे [EI, 1, n° XLIII, n° 9] मथुरा-प्राकृत-भन्न ' [हुविक वर्ष ४५] १. सिद्धम् स ४० ५ व ३] दि १० [७] एतस्य पूर्वा]य......" ये बुद्धिस्य वधुये धर्मवृद्धिस्य अनुवाद-सिद्धि हो। ४५ वे वर्षकी वर्षाऋतुके तीसरे (1) (महीने) के १७ वै दिन, धर्मवृद्धिकी.. • बुद्धिकी बहने...... . . ... . [El, 1, n XLIII, n° 10] मथुरा-प्राकृत। [हुविष्क वर्ष ४७] १. स ४० ७ गृ २ दि २० एतस्य पुर्वय वरणे गणे पेतिवमिके कुले वाचकस्य ओहनदिस्य शिसस्य सेनस्य निवतना सवकस्य
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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