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प्रभुः शौचाचार - सार
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सावनूरका लेख --
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....अनवरत - विनुत- सुर-नर घटित-पद-कमल-युगल श्रीमदीश्वर.... पादाराधकं विरोधि-निकुरुम्गण्ड पाण्ड्य-मण्डलिकसभामण्डन प्रचण्ड- दण्डनाथ' • विराजमान सतत - स... नाभिमान" ..... मंत्रोत्साह-शक्ति-त्रय-गुण-गणं....त नियोगयोगन्धर निखिल-धर्मधारण' 'पाळ-मस्तक- खण्डन-प्रचण्ड-दोर- दण्ड पाण्ड्य - मण्डळिकदक्षिण ....... पर्व्वतारूढ नि
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'वळ-विळ सत्-पाण्ड्य 'सूर्य- दण्डाधिनाथम् ॥
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वृ ॥ दोरे मरु देवी"
ऊढ़-प्रौढ़-नितम्बिनी-निकुरुम्बदिव्य.... श्रीमत् - त्रिभुवनमल्ल परिच्छेदि-गण्ड पाण्ड्य-मण्डलिक ........ शरणागतवज्र-पञ्जर । मृदु-मधुरदार- हित सतत दण्डनाथ कुळ-कमलिनी-विकासन सहस्रकिरण । वन्दि - जन-भरण.... ....त्रि सूर्य- दण्डाधिनाथम् ॥
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कं ॥ आळापदिन्दे पाड्य-नृ- । पाळरगद विरोधि नृप
.....सि पद - नतरं प्रति ।
पाळिसिद सु-भट...... दण्डाधीशम् ॥ ............ जिन-स्तवन'''सम्पू पवित्रोत्तमाङ्गदरदिं मुक्त ''चिनुरुतर-वज्र''''करतळ-रुचियिन्दोप्पुत· · · नत्र्थदिं भाखर-कान्ता -
रत्नमे
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कं ॥ मण्डळिय ....दडे ......केषेयेलु.......डगलेनरे
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............ताम् ।
सरि नुत- लक्ष्मि तत् - सदृशमा- प्रियकारिणि देवियेन्दोडी -
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