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कल्लूरगुहका लेख
४२३ इसके बाद अपने मन्त्रियोंकी सम्मतिसे, उसने अपने पुत्रोंको, अपनी कुमारी छोटी बहिन तथा ४० चुने हुए बाह्मणोके साथ बाहर भेज दिया, और चूकि वे दक्षिणको जा रहे थे, उनका नाम बदलकर क्रमसे दडिग और माधव रस दिया।
चलते-चलते वे एक अत्यन्त मनोरम स्थानपर आये, जहाँ उन्हें विशाल पेरुर् (शायद कोई तालाब-विशेष) और एक पहाडी मिली जो पुप्पाच्छादित मन्दार, नमेरु तथा चन्दनके वृक्षोंसे आवृत थी। उस गहहेरूरको देखकर वहीं उन्होने एक तालावके किनारे अपने तम्बू तान दिये, वहाँ एक चैत्यालय भी उन्हें दिखाई दिया, जिसकी तीन प्रदक्षिणा करनेके बाद, स्तुति करते समय, क्राणूर-गण-माकाशके सूर्य, गग राज्यके प्रवर्धक श्री-सिंहनन्धाचार्य दिखाई दिये। गुरुमें श्रद्धा होनेके कारण उन्होंने उनकी विनय की और अपने माने का उद्देश्य कहा। इसपर वे उनको हाथ पकटकर ले गये और उन्हें विद्याकी कलामें प्रवीण किया, और कुछ दिनोके बाद अपने श्रद्धा-बलसे पद्मावती देवीको प्रकट कर वर प्राप्त किया, और उन्हें एक तलवार तथा सपूर्ण राज्य दिया।
जिस समय मुनिपति ऊपरकी ओर देस रहे थे, माधवने अपनी तमाम शक्तिसे एक पापाण-स्तम्भपर प्रहार किया, और वह स्तम्भ कडकड करते हुए नीचे गिर पड़ा । मुनिपतिने इस शक्तिको देखकर उनको कर्णिणकारके परागोंसे तैयार किया गया एक मुकुट पहिनाया, उनके ऊपर अनाजकी वृष्टि की और बहुत खुशीसे तमाम पृथ्वीका राज्य देते हुए, झण्डेके लिये अपनी पीछीको चिह्न बनाया, तथा बहुतसे सेवक, हाथी और घोडे दिये। ___ तमाम राज्यका अधिकार देते हुए उन्होंने उन्हें इस उपदेशसे सावधान किया:-अपनी प्रतिज्ञात वातको यदि वे नही करेंगे, अगर वे जिनशासनको स्वीकार नहीं करेंगे, अगर वे दूसरोंकी स्त्रियोको ग्रहण करेंगे, अगर वे मांस और मधुका सेवन करेंगे, अगर वे नीचोंसे सम्बन्ध जोड़ेंगे, अगर वे मावश्यकतावालोंको अपना धन नही देंगे, मगर युद्ध भूमिसे भाग जायेंगे:-तो उनका वंश नष्ट हो जायगा।
१ शिलालेख इस बातमें एक राय है कि यह प्रहार तलवारसे किया गया था।