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________________ ३९६ जैन - शिलालेख संग्रह निजवेनिपी-नेगर्त्तेय महामतिगुत्सत्रमं निमिर्चुवा । त्मजरेनिसि तम्मुतो हुट्टिदरोप्पुत्र मार....... स- जयदे सत्य- गङ्गनृप कलि-रक्कस - गङ्ग-देवनुं । भुजबळ - गङ्ग-भूभुजनुमार्जिसिदर्जसमं निरन्तरम् ॥ स्थिरने मेरु- गिरीद्रनो सेणसुव गम्भीरने बार्धियो । पुरुडिप्पं कलिये सुरेन्द्र-सुतनं मे महा चागिये । सुर-भूजकोरेगाव चदुरने पाञ्चाळन गेल्दनन् - दिरदी- धारणि वण्णिकु रण-जय-प्रोत्तुगन गङ्गनम् ॥ नुडदुदे नन्नि माडिदुदे शासनमित्तु दे राम- रेसुमार - 1 प्पिडिदुदे वज्र-लेपसुरदिर्हुदे मृत्यु परोपकारदोळ् । नडेदुदे बडे सद्गुणमे मेय्येने निन्नबोलिन्तु नीतियोक् । नडेव नृपेन्द्रनावनिळेयोक् कलि-गंग-भूपती ॥ आतन तम्मम् । गज-रिपु- विष्टरादि- विभवोदय पार्श्व - जिनेन्द्र- पाद-पं- | कज-मद-भृङ्ग- गङ्ग-कुळ-मण्डन दण्डित वैरि-वर्ग भा वजनिभ मूर्त्ति दिग्बलय-वर्त्तित- कीर्त्ति समस्त धात्रियोळ् । भुजबळ - गङ्ग-भूप निनगार होरे मण्डळिकैक-भैरव ॥ आतन-पट्ट - महादेव || पट्टद''''रननुजं । पट्ट.''भूपङ्गे गङ्गत्राडिगे तळेदळू | पट्टमनेन्दडे गङ्गन | पट्टमहादेवियन्तु .........."}} गङ्ग-महादेवियर्ग भुजबळ - गङ्ग- देवनग्र-तनूजनेन्तेन्दडे | कलियनदिई 'एन्दु निमृदेत्तिद बाहुवे ........ | 'हळदू मरे...सले" Į 0808 ******
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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