________________
जैन-शिलालेख संग्रह मभोगके थे-की आज्ञासे सब सत्त्वोके सुख और क्ल्यागके लिये, मित्राकी तरफसे । समर्पित की गई । यह मित्रा हग्गु देव (फल्गुदेव) की धर्मपत्नी, लोहेका व्यापार करनेवाले वाधरकी बहू खोट्टमित्रके मानिकर" जयमटिकी पुत्री....... । अर्यदत्त गणी अर्यपालके पादचर थे। अर्यपाल अर्य ओघवे शिष्य थे और अर्य ओघ महावाचक गणी जयमित्रके शिष्य थे।
[El, 1 n° LIII, n ]
मथुरा-प्राकृत-भन्न । [बिना कालनिर्देशका है, पूर्ववर्ती शिलालेखले ही मिलता-जुलता होनेसे इसका भी समय हुविष्क स. २० है] वाचकत्य दत्तशिप्यस्य सीहत्य नि......"
[El, 1, P 333, n* 60]
मथुरा-प्राकृत ।
[हुविष्क सं. २२] १. सिद्ध सब २० . २ नि १ दि त्य पुर्वाय वाचकस्य अर्यमात्रिदिनस्य णि · ।
२. सत्तवाहिनिये धर्मसोमाये टान !| नमो अरहतान
अनुवाद-सिद्धि प्राप्त हो । [हुविष्कके ] २२ वें वर्षकी प्रीष्मके पहले महीनेक दिन, वाचक अर्य-मात्रिदिन (आर्य-मातृदत्त) के आदेशसे यह धर्मसोमाका दान है । धर्मसोमा एक सार्थवाहकी स्त्री थी । अर्हन्तोको नमस्कार हो।
[EI, 1, 2 XLIV, n° 29] १ निवर्तना'।