________________
૨૮૨
जैन-शिलालेख-संग्रह [जिनशासनकी प्रशंसा। त्रिभुवनमाल-देवके विजय-राज्यमे तापादपझोपजीवी गझरस था; इसको 'जयदुत्तरग' नाम भी दे रक्खा था । नीतिवाक्य कोगुणिवर्म धर्ममहाराजाधिराज परमेश्वर महामण्डलेश्वर त्रिभुवनमल्ल भुजवळ-गग-पेाडिदेवकी पहरानीने अपने छोटे भाई पट्टिग. देवके लिये गङ्गवाडिका मुकुट धारण किया। तमाम रानियो और राजाओसे वह ज्यादा प्रतिष्ठित थी। ___ उन दोनोंके चार पुत्र उत्पन्न हुए-गङ्ग, मारसिंग, गोग्गि, और कलिया । ये सब महान योद्धा थे।
जिस समय गङ्ग-पेाडि-देव, गग महादेवी, और उनके लडके मण्डलि हजारमे अपने निवास स्थान एडेलिमे थे, उस महामण्डलेश्वरकी एक अन्य मङ्गिनी वाचल-देवी (उसकी प्रशंसा) थी। उसने अपने पतिको पानजग-दळे'की उपाधि दी थी।
जिस समय (अनेक उपाधियोवाली) वाचल-देवी वनिकरेमे, अपनी तीसरी पीढीकी खुशीसे विश्रब्ध होती हुई, सुसपूर्वक रहती थी, उसने अपने बड़े भाई वाहवलीसे परामर्श करके वनिकरेमें एक सुन्दर जिनालय बनवाया।
वाचल-देवी मूलसंघ, देशीगणकी गृहस्थ-शिष्या थी। उस देशीगणके लिये उसने चैत्यालय वनवाया। समुद्र-परिवेटित लोकर्म गङ्गवाडि-नाह प्रसिद्ध है
और उसमे मण्टलि-नाइ प्रसिद्ध है। उसमे चेहरेपर जैसे नाक है उसी तरह वनिकरे था । पार्श्वनाथ भगवान के लिये चालुक्य विक्रमके ३७ व वर्षमै भुजवळ-गग पेडिदेव, गग-महादेवी, पेगडे-वाचल-देवी, और कुमार गङ्गरस, मारासिंग देव, गोग्गि-देव, कलिया-देव, और तमाम मन्त्रियोने, नाइ-प्रभुओकी उपस्थितिमें सब क्रो एच चुलियोले मुक्त, मण्डलिहजारके वृदशेने, वनिकेरेकी कुछ जमीन, एक बगीचा, दो कोल्हू, और उन दोनो शहरोकी कुछ चुङ्गीकी भामदनीका दान लिया। भाशीर्वचन और शापापापाण-शिल्पी कालोज (शासनके उत्कीर्ण करनेवाले) का नर्तकियोंक लिये दान । शुभचन्द्र-देव-मुनिपकी प्रशसा । लोशिशुण्डि प्रभु एरेकष्णन भगवानके भोगके लिये ११ लोकि गद्याण, तथा कुछ भूमि दान की।
[RC, VII, Shamoga ti, n° 97]