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________________ जैन - शिलालेख संग्रह अन्तेनिसि नेगर्द्दग ङ्ग-पेर्म्माडि-देवरु गङ्ग-महादेवियरु कुमार-वर्गमुं मण्डकि-सासिरदोळगणे डेहलिय वीडिनो सुख-संक्रया विनोददि राज्यं गेय्युत्त मिरला -महा-मण्डलेश्वरनर्द्धाङ्ग-लक्ष्मि || ३७८ श्री-धु जय त्रधु कीर्त्ति | श्री - बधु वाग्बधुवेनिप्प वधु गङ्ग नृप । ई - धुवे निसिद वाचल - देवियोळेणेयेन् वेनुळि नृप-वनितेयरम् ॥ ई-चतुरम्बुधि-वेष्टित- भू-चक्रद सतियरेन्नलाढढवेनो । वाचल-देविगे समन् "|-च-मणि प्रतति दोरेये चिन्तामणियो || काम-मढेभ-गामिनिगे‘''नमे पूज्यमेनिप्प पेम्पिनिन्द् । ईव म तणुपि कल्प- कुजक्केणे.... दू... • र-दान-गुण-भूपणे दान - विनोटे दान- चिन्- | तामणि दान-कल्प-लतेयेम्बिदु वाचल- देवि गोष्पदे || एरगदराति भूभुजरनाजियोळञ्जिसि निजाङ्घ्रिगळ | एरगिसुतिर्प दर्पद पोड गण्डनप्प त । न्नरेयन....... “तनगे गङ्ग-महीभुजन विलासदिन्द् । एरगिसि·--भाग्य-भरदुन्नति बाचल- देवि गोप्पुगुम् ॥ अन्तुमल्लदे ॥ अरि-विरुद - पात्र - जगदळ । धरेगेल्ल नीने राय जगदळे नानी | धरेगेल्लमेन्दु पिरिदा-। दरदिन्द सि पात्र - जगदळे - वेसरम् ॥ कुडे राय जगदळे-पेसर- । वडेद पडेदऴ् रायरोळप्प कुडे बाचल-देवि पात्र - जगदळे-वेसरम् ॥ मत्तम् ॥ 2030 · *** • ... ******* "मेवुदे-नडे- तन्न महत्त्व-वृत्तियं । वेडदे नोडिरे नेगब्द वाचल - देविय कीर्त्ति ........| ...डेय कडेय वडवुगळीयलू |
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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