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हुम्मचका लेख
३५५ [तु] कुळद्विजपुगवगोकुळमनळि दरिन्तिदनळिदर । वीरपेर्माडिदेवस्य जिनालय ॥
[इस लेखमे चालुक्य राजा पेर्माडिदेवके द्वारा शकवर्ष १०१९ मे जो धातु 'संवत्सर' था, १२ 'निवर्तन' भूमिके दानका उल्लेख है । तत्पश्चात् कन्नकेरके दानका उल्लेख है । यह दान उक्त दानसे पहलेका होना चाहिये । यह कन्नर, प्रथम या द्वितीय है, यह इस लेखपरसे कुछ पता नहीं चलता। अन्तमें यह लेख अपने साधारण तरीकेसे भूमिदान करनेके तथा पूर्ववर्ती राजाओंके दानोंकी रक्षा करनेके फायदोंके बतानेवाल श्लोकोसे समाप्त होता है। [JB,X, p 170-171 a, p. 194-198, t, p 199, tr ,
_ins n° 2, ( II part ) ]
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हुम्मच-कन्नड-भन्न [काल लुप्त, पर संभवत. १०९८ ई० १ (लुई राइस)]
[पंचवस्तीके प्राङ्गणमे, दक्षिणकी ओरके एक पाषाणपर] स्वस्ति श्री-मूल-संघद ..."पुस्तकगच्छदोळे प्रसिद्धि-वडेद श्री ......"भट्टारक-शिष्यरप्प लक्ष्मीसेन-भट्टारक-देवरु चिरकाल तप गेय्दु.... ...॥ विदित-बहुधान्य ......"कार्त्तिक शुक्ल तृतीयार्कजवार-सूर्योदय""लक्ष्मीसेन-मुनिपरमरास्पदम ॥........ ....... . देवसेन-भट्टारक .......... चारित्र-गुणोल्लसित-श्री-पार्श्वसेन-भट्टारकएने जस बडे...॥
विदित-बहुधान्य-नामा । ब्ददोळोप्पुव-चैत्र-बहुळ-नवमी-कुजवा
मूल लेखके अनुसार शक काल १०१८ बीतनेके बाद जो कि चालुक्य विक्रमादित्य द्वितीयके राज्य प्रारम्भ होनेका २१ वॉ वर्प था।