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________________ जैन - शिलालेख संग्रह तेडेयुडुगदी त्र - दान- । व्रतियं कर्पूर - सेयं वेडु बुदा || कीर्त्ति - श्री रमणन-बोल | मूर्त्तियोळभिनव-मनोजन नम् । ३२० कूर्त्ता मसण-सेडिगे । मार्त्तण्डन मग नळ - ... मनुजर्गम् । मरे - वोक्करदि का बन्धु - जनकम् । नेरे पोत कल्प- तरुत्रम् । नेरे वणिपुर काचि-सेट्टियम् "नृपळवे ॥ ॥ गणधर - भूपनन्त्रय-शिखामणि गोत्र - पवित्रन - द्विपम् गुण-गण-नाथ गुण्पिन 'पेम्नि मेरु वोन्दू | अगणित- बाब सत्यद तबर्म्मने मानव-वन्यनेन्दोडिन्न् । एणे 'हट्टणदोळोप्पु माणिकनन्दि- देवरोळ् ॥ स्वस्ति स ( श) क - वरिस - सायिरद कालयुक्त-संवत्सरं प्रवत्तिसे नखर जिनालय के वि भूमि - ( यहाँ दानकी विगत आती है ) आ-पट्टणदलु नडत्र देव-दाय हत्तु हेरिने हाग देवरिगे सोडरेगेगे गाण १ ( हमेशा के शापात्मक वाक्य ) श्री-मूळ-सवढे सेय गणपोस्तक- गच्छकोण्डकुन्दान्वयद श्रीमतु नागचन्द्र- चान्द्रायण देवर-शिष्य रुणिकच्छगोण्डि - देवरु मदवळि बोपवे मगळु काचवे मलवे मादवे माचवे बाळ चन्द्र- देवरु | सेन्यि हल्लिय मलि-सेटि चिक्कसेनि तम्म सेट्टिगे विह भूमि जक्कसमुद्रदल्लि सलगे ५ * रोदद हलोजन मग वीरोज ई-शासनव होयिद || * यह पंक्ति पत्थर के सिरेपर है । •
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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