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हुम्मचका लेख वीरदेव भी सफल है। आगेके श्लोकोमें उनकी समुद्रसे तुलना की गई है। पट्टण-स्वामीके पुत्र मल्लने इसे लिखा ।
सिद्धान्त-रत्नाकरदिवाकरनन्दिने मूखों या बच्चों तथा विद्वानोंके सबके अववोधार्थ कन्नडमें तत्त्वार्थसुनकी वृत्ति लिखी। पट्टणस्वामीके इष्ट देव जिन थे, उसके शासक वीर-शान्तर थे, उनके पिता अम्मण, गुरु दिवाकरनन्दि सिद्धान्तदेव थे। (जिनकी पूजाके लिये दैनिक सामग्री तथा लोगोके कल्याणका वर्णन करनेके बाद),-नोक्की प्रशसा।
चन्द्रकीर्ति भट्टारकके मुख्य शिष्य दिवाकरनन्दिसूरिकी प्रशंसा । उन्हींका अपर नाम सिदान्त-रनाकर था। उनके शिष्य सकलचन्द्र-मुनिनाथ थे। पट्टण-स्वामीनोक्वय्य-सेहिके पुत्र वैश्य-वंश-तिलक इन्दरकी प्रशंसा । ]
[EC, VIII, Nagar tl, n° 57]
२१३ हुम्मच-संस्कृत तथा कन्नड
[शक्९९९-१०७७ ई०] [हुम्मच में, पञ्चवस्तिके ऑगनके एक पाषाणपर ] भद्रमस्तु जिन-गासनाय ॥
श्रीमत्परमगभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिन-शासनम् ।। शक-वर्ष ९९९ नेय पिङ्गळ-संवत्सरं प्रवर्तिसुत्तमिरे स्वस्ति समस्त-भुवनाश्रय श्री-पृथ्वी-वल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परम-भट्टारक सत्याश्रय-कुळ-तिळक चालुक्याभरण श्रीमत्-त्रिभुवनमल्ल-देवर राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धि प्रवर्वमानमा-चन्द्रावतार सनुत्तमिरे । तत्पादपद्मोपजीवि | समधिगतपञ्च-महा-शव्द महा-मण्डलेश्वरनुत्तर-मधुरावीश्वर पट्टिपोम्वुर्च-पुर-वरेश्वर महोग-वंश-ललाम पद्मावती-लब्धवर-प्रसादासादित-निपुळ-तुळापुरुष-महादान-हिरण्यगर्भ-त्रयाधिक-दान वानरध्वज