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जैन - शिलालेख संग्रह
चराचर त्रजमनात्म-वचोऽमृतदिं विनेयर । स्वान्त- रजो-मळ तोळेदु पोतेने पे बुध - पद्मनन्दि - सि । द्धान्तिक-चक्रवर्तियनदार् पोगर ग्गुण- गील-मूर्त्तियम् ॥
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आ-प्रतिष्ठाचार्य्यरेनिसिद श्री पद्मनन्दि- सिद्धान्ति-देवरिं सु-प्रतिष्ठितमाद कुप्पटूर श्री पार्श्वदेवर चैत्यालयम पट्ट-मा- देवि माळलदेवि नेरेये माडिसि स्वस्ति यम-नियम - खाध्याय - ध्यान-धारण- मौनानुष्ठानजप-समाधि-शील-गुण-सम्पन्नरप्प श्रीमदनादियग्रहार कुप्पटूरोप -महाजनङ्गळ ययोक्त-विधिथिं पूजिसियवरिं ब्रह्म - जिनालय मेन्दु पेसरियल्लिय कोटी वर-मूलस्थान- प्रमुख-पदिनेण्टु-स्थानदाचार्य्यरु वेरसु बनवसेय मधुकेश्वर देवरा चार वरिसि पूजेयं को जोग-बगेय-निक्किसियामहाजनङ्गग्गेियय्नूरु-होन कोड स्त (स्थ) ल-वृत्ति ( आगेकी ३ पक्तियोमें टानकी विस्तृत चर्चा है ) शक- नृप - वर्पद ९९७ य पिङ्गल- संवत्सर दक्षय- तदिगेयमावास्ये- आदित्यवार - संक्रमण व्यतीपातवोन्दिद दिनदोल देवर नित्य-नैमित्त-पूजेग ऋपियराहार- दानक्कवेन्दु पद्मन्दिसिद्धान्तिचक्रवर्त्तिगळ् काल तोळेदु धारा- पूर्वक माडि कोहळु ( हमेशा के अन्तिम वाक्यावयव ) आरुवणव नमस्यवागि विवरु ॥ ( हमेशा के अन्तिम श्लोक ) वम्मरहरियण्ण हेन्द शासन मङ्गळ महाश्री ॥
[मेरु पर्वत, भरत क्षेत्र, कुन्तल - देश, और वनवासिके उल्लेख पूर्वक.कादम्ब कुल-कमल मार्त्तण्ड कीर्त्ति देव राज्य करते थे, जिनका वशावतार निम्न प्रकार हे - मयूरवर्म्मा नामके एक राजा या युवराज थे । शासनदेवीकी कृपा से इनको राज्य मिला था, और एक वनको राज्यके रूपमे रूपान्तरित किया गया था । एक मयूरके पचोका बनाया हुमा पट्ट उनके सिरपर रक्खा गया था, इसलिए उनका नाम मयूरवर्म्मा था । ये कदम्बto अभिवन्द्य थे | उन्हींकी साक्षात् सन्तान कीर्त्ति देव थे, उनकी
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