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जैन शिलालेख संग्रह धित-बुध ........
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..."अभिविनुतर श्री-माघनन्दि-देवर प्पलवु जिन-निळ्यङ्गळम-खिळावनि वण्णिसे बलिगा ... .... .......... ......"जिन-पूजामि ...चना-निरननाहारादि-दान-प्रवर्द्धन-शील नुत-भव्य.........."हामण्डलेबरं लक्ष्मरसं श्रीमल्लिकामोद शान्तिनाथ-जि . .. कीलकसंवत्सरद भाद्रपदद पुण्णमे सोमवारद ". ""देसिगगणद ताळकोलान्वयद माघनन्दि-भट्टार ...... .."पर्गे मुन्न श्रीमञ्जगदेकमल्ल देवर व्यळिगावेय ... . ... ... ... ... .."न्दे मत्तर पन्नेरडु अल्लिय गोळपय्यन घसदिगे ..................." श्रीमचालुक्य-गङ्ग-पेनिडि-विक्रमादित्य- देवर " .. ...... ....""मुम नन्दन-बनद बसदिगे पूर्वदिन्नडेव " ....... भूप समुचित-विनय विन्नप गेय्ये ... ..... . ..."दर्प-देवम् ।। अनघश्री-शान्तितीत्यश्वर-पद · .... , ... विधि-सहित शासन माडि कोट ... • (ोशाके अन्तिम वाक्यावयव तया श्लोक) ... जिड्डळिगे गुन्दि नाल्कार पोम्मानिगर्द्धम् " एरडक्कु कृष्ण-भूमकदररे किमु " अदररेयु नोडि सिद्धायमकुम् || ... ग दासोजं खण्डरिसिहं मंगळ महा श्री ॥ .
[जिन शासनकी प्रशमा। जिस समय (चालुक्य उपाधियो सहित) त्रैलोक्यमल्ल आहवमल्ल-देव शान्ति और बुद्धिमानीले राज्य कर रहे थे उन्हें लाट, कलिंग, गग, रहाट, तुरक, वराट, चोळ, कर्णाट, सुराष्ट्र, मालव, दशापर्ण, कोशल, पेरर ये मय राजा भेट देते थे। मगध, आन्ध्र, अवन्ति, वग, द्रनिळ, कुर, सस, आभीर, पाज्ञाळ, लाळ और दूसरे देशीका उन्होने नाश कर