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जैन - शिलालेख संग्रह
गुरुगळ् सिद्धान्त-तत्त्व-प्रवचन- पटुगळ् पुष्पसेन - व्रतीन्द्रर | वर - स नन्दि - सङ्घ द्रविळ-गण-महारुङ्गाम्नाय - नाथम् । परमार्हन्त्यादि - रत्नत्रय - सकल-महा-शब्द-शास्त्रागमादि - | स्थिर-पट्-तर्क-प्रवीणर् त्रति-पति-गुणसे नारार्थ्य-प्रणूतर |
[ ( उक्त मितिको ), आगमरूपी अमृतके गहरे समुद्रके पार जाने वाले श्रीमद् गुणसेन पण्डित देवने मोक्ष-लक्ष्मीका निवास प्राप्त किया। उनके गुरु पुष्पसेन प्रतीन्द्र थे । गुणसेन पण्डित - देव द्रविळ गणके नन्दिसंघके तथा महा रुसलानायके नाथ थे । ये सब विद्याओ-- व्याकरण, भागम, तर्क - में प्रवीण थे । ]
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[ EC, IX, Coorg tl n° 34]
२०३ हुम्मच क [शक ९८७ = १०६५ ई० ]
-कन्नड
[ हुम्मच, चन्द्रप्रभ वस्तिकी बाहरी दीवालपर ] भद्रमस्तु जिन सा (शा) · · खस्ति समस्त-भुवनाश्रय श्रीपृथिवी वल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक सत्याश्रय-कुळतिळकं चालुक्याभरण श्रीमत् त्रैलोक्य मल्ल- देवर् चतुस्समुद्र- पर्य्यन्तपृथ्वी - राज्यानुष्ठानदिनिरे तत्पादपद्मोपजीवि । खस्ति समधिगत- पश्चमहा-शब्द महा-मण्डलेश्वरनुत्तर- मधुरावीश्वर पट्टि - पोम्बु-पुर-वरेश्वर महोय -वश - ललाम पद्मावती- लब्ध-वर प्रसादासादित- विपुळ-तुळापुरुष-महादान - हिरण्यगर्भ त्रयाधिक दान वानर-ध्वज- विराजित - राजमान मृगराज- लाञ्छन- विराजितान्त्रयोत्पन्न बहु-कलाकीर्ण सान्तरादित्य सकलजन स्तुत्य कीर्त्ति - नारायण सौर्य्य-परायण जिन पदाराधकं रिपु-वळसाधक नीति-शास्त्रज्ञ विरुद सर्व्वज्ञ नामादि- समस्त प्रशस्ति सहित श्रीमत् त्रैलोक्यमल्ल - भुजबळ - शान्तर -देव शान्तळिगे - सासिरम निर्दायादवु निरा