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जैन-शिलालेख-संग्रह
सुजन-जन-वनज-हंसन ।
सुजनजन पोगळे मल्लिनाथ नेगळ्दम् ।। गुडिवयलुम बिट्ट (सिरेपर) पट्टण-खामिय परि नेम-प्रतवेरेदन्ढे तुरवनिन्तिदु.. गेय्यद ... येत्तिद य "सा "सन्तोस(प)-दानविनोद... · | श्री-पट्टण-सामिय गुरुगळ् श्रीमद्-दिवाकरणन्दि-सि द्धान्त रत्नाकर देवरु श्री-विरुद-सर्वज्ञ वीर-सान्तर-देवम् ।।
पुसियदिरारोळव-नदि पर-नारिय त्तपोगे तप्प् । एसगदिराव-जीवदेळमेत्रडेयेम्बुदनेन्तुमोल्लदिर् । कुसियदिरायदि पोणर्दु तन्तेडेयो व्रतमेन्दु कोण्डुदम् । विसडदिरेम्बुदी-बरेद · ·सने सान्तर-वीर-देवनम् ॥ नेगर्दुप्रान्वय-पद्मिनी-दिनकरं श्री-शान्तरोर्बीशनु- ॥
द्घ-गुणाम्भोनिधि बीरुग विरुद-सर्वज्ञ धरा-मण्डळम् । पोग[ळ]ळू कूम्मियिनीये निर्मळ-यश धर्माधिक ताब्दिदम् । जगदोल् पट्टण-सामि-बट्टमनिदेम् नोक यशो-भागियो । पट्टणस्वामि-जिनालयद शासनम् [जिनेन्द्रकी प्रशसा।
जब, (उन्हीं चालुक्य-पदों सहित), त्रैलोक्यमल्ल-देवका राज्य प्रवर्तमान था जब, (उन्हीं पदो सहित जिनसे अलङ्कृत नन्नि-शान्तर शि० ले० नं० २१३ मे हैं), त्रैलोक्य मल्ल वीर-शान्तर-देव शान्तळिगे हज़ारपर एकछत्र राज्य कर रहा था,
तत्पादपद्मोपजीवी (उन्हीं पदों सहित जैसे कि पद शि० ले० नं० २११ में है)। पट्टण-स्वामि नोक्कय्य सेष्टिको ( उक्तमितिको) अपने बनवाये हुए पट्टण-स्वामि जिनालयके लिये वीर-शान्तर-देवको सोने के १०० गयाण मेट करने पर, मोलकेरेका दान मिला; इस गॉवकी सीमाये । इसने